पितृ-दिवस..…
दिया रूप, आकार, और आधार, धरा-पावन पर। बुद्धि, रिद्धि-सिद्धि, संयुत, कर के, खड़ा किया, पावन पर पी मेरे संताप और परिताप, सकल जीवन का। किया न पश्चाताप, मान अभिशाप, दग्ध-जीवन का। आज समृद्धि, समाज-साज, सुख-साज भरा, यह जीवन। नहीं कहीं अवसाद, मुरादें पूरित पिये सजीवन। किया असंभव संभव जिसने, पूज्य पिता ह…