दिया रूप, आकार, और आधार, धरा-पावन पर।
बुद्धि, रिद्धि-सिद्धि, संयुत, कर के, खड़ा किया, पावन पर
पी मेरे संताप और परिताप, सकल जीवन का।
किया न पश्चाताप, मान अभिशाप, दग्ध-जीवन का।
आज समृद्धि, समाज-साज, सुख-साज भरा, यह जीवन।
नहीं कहीं अवसाद, मुरादें पूरित पिये सजीवन।
किया असंभव संभव जिसने, पूज्य पिता है मेरा।
अर्पण कर, सम्मान-गान, करती कविता है तेरा।
विनम्र श्रद्धांजलि.…🙏🙏
हे पितृ देव ! शत् नमन, तुम्हें,।
कविता कर, अर्पित सुमन, तुम्हें।
विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन..…
महेन्द्र राय
पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़।
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