प्रेम की खिचड़ी
बड़ा ही अद्भुत पर्व है ये दिखे सूरज की लाली। स्नान, दान, और पूजा से तो सज जाती है थाली। दही, चूरा, गुड, तिलवा, तिलकुट सबके मन को भाये पतंग उड़ाते नभ में बच्चे स्वागत करती ताली। लोहड़ी, पोंगल, पीहू, उत्तरायन, बिहू, संक्रांति नाम प्रेम की खिचड़ी जन-जन खाएं कोई बचे न खाली। दमके प्रभु सद्भाव का मौसम …
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बेटियों को विरासत नही चाहिए !!
शादी के बाद हर लड़की चाहती है !! की उसके पिठ पीछे मायके की एक मजबूत दीवार हो !! कुछ ना भी मिले फिर भी !! ऐ एहसास हो मेरे मायके वाले मेरे साथ हैं !! तीज त्योहार पर मायके से कोई आये !! साड़ी कपड़े मिठाईयों के साथ !! ससुराल में गर्व से बोलती हैं !! मेरे मायके से आया है !! मायके से एक बटोहिया भी आ जा…
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🌹धरती के श्रृंगार वृक्ष हैं।🌲
वृक्षों के महत्व और इन्हे लगाने, संरक्षित करने आदि पर जन जागरूकता पर एक विशेष प्रस्तुति :-              धरती के श्रृंगार वृक्ष हैं जीवन के आधार वृक्ष हैं यही हमे फल फूल हैं देते रोग व्याधियों को हर लेते इन्हे लगाओ, इन्हे बचाओ रोग दोष संताप मिटाओ।। प्राण वायु हम सबको देते बदले में हमसे क्या लेते इन्…
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*प्रकृति पर संकट*
1.  आज प्रकृति मायूस खड़ी है,       विपदा भरी आन पड़ी है।। 2.  जल जमीन जीवन का नाश,       जीव जंतु खग विहग निराश।। 3.  कूड़ो से पट रही जमीन,      चारों तरफ है पालीथीन।। 4.  कूड़ा कचरा यत्र तत्र है,      शीशा प्लास्टिक सर्वत्र है।। 5.  मिट्टी से घट रही उर्वरा,      बंजर बन जा रही वसुंधरा।। 6.  अंधाध…
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लो संक्रामक मौसम आया
संक्रामक रोगों के प्रति जनजागरूकता पर एक विशेष काव्य प्रस्तुति :- लो संक्रामक मौसम आया, बीमारियों ने हमे डराया डेंगू, पेचिस, पीलिया, डायरिया टायफाइड ने कहर ढहाता ।। गंदे हाथ से खाना खाते सारे संक्रमण पास बुलाते कीटाणु 🦠 वायरस पेट में जाकर हम सबको बीमार बनाते ।। फुल्की, चाट, समोसा खाते कइयो सारे रो…
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मिट्टी का पुतला ......
क्यों बंटता है धर्म युद्ध में। कहां भला तू जाएगा।। मिट्टी का पुतला है आखिर। मिट्टी में मिल जाएगा।। दुनिया एक तमाशा है जो। आंखों के आगे छलती।। जानबूझकर तेरे दिल में। फिर भी इच्छाएं पलती।। इच्छाओं के सागर में तू। कितने गोते खाएगा।। मिट्टी का पुतला है आखिर। मिट्टी में मिल जाएगा।। तेरा मेरा मेरा तेरा। …
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*कुछ फासले जरूर रखिऐ रिश्तों के दरम्याॅ*
गम नहीं होता गर वो मार भी देता, कत्ल कर गया मेरा वो दुआ देकर। मैं क्या बयाॅ करूॅ नादानी अपनी, वो लूट गया मुझको इत्तला देकर। मैं कैसे बयाॅ करूॅ गद्दारी उसकी, वो मार गया मुझको दवा देकर। न जाने कैसै जाल में उसके मै फँस गया, चला गया वो मुझे छोड़ कर दगा देकर। जेहन में मेरे ऐसी तो कोई बात नहीं थी, लगा गय…
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आज वीरान अपना शहर देखा
आज विरान अपना शहर देखा तो कई बार नजरें उठाकर देखा  इंसान टूटे हुए नजर आए और एक ठहरा हुआ सफर देखा  होश में आ गया जिया हुआ बचपन  जब हमने गिरा हुआ उसका मकान देखा  रास्ते काटे हुए हर वह शक्स याद आए  जब प्यार से गलियों का वह खरंजा देखा अपने आत्मसम्मान पर जब उनको चोट लगी तो अपने अंदर के मकान का हर एक द…
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माँ-बाप की बेबसी .......
दिन-रात साल महीना देखते-देखते  बरसों बीत गया  घर की आंगन और माँ  दोनों की नजरें अभी भी दरवाजे की उस कोन पर अटकी है...  लेकिन नई पीढ़ियों को इसका कोई गम नहीं है  बूढ़े बाप का सहारा बना लाठी भी अब बेसहारा हो चला है.... लेकिन नई पीढ़ी को इसका कोई गम नहीं है जलती, खिलखिलाती, आंगन का चुल्हा  भी बुझने …
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आ अब लोट चलें
बांसों लकड़ियों और सूखे पेड़ की टहनियों से आशियाना बनाएं। ईंट लगा गारे से चुनाई करें। चूना और गेरू से रंग उसकी पुताई  करें। घास फूस की छत बना देसी कवेलु से बारिश की समस्या  को हल करें। आ अब लोट चलें।  मोमबत्ती बिजली या बैट्री चलित दिये की जगह रुई की बात बना तेल या घी में उसको डुबा मिट्टी का दिया …
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क्यों रोई थी मैं.....!!
एक बेटी की कलम से  ......!! क्यों रोई थी मैं .......!! बेटी के रुप में जन्म लिया था इसलिए .....!! बेटी पराया धन हैं ये सून कर बड़ी हुई .....!! शादी के बाद मायका अपना नहीं रहता ....!! क्यों रोई थी मैं ....!! मायके जाने पर सब पूछते हैं .....!! कितने दिन रुकना है ......!! बहुत दिन बाद आई हो .....!! कू…
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बात उनकी भी करें......
हाशिए पर जो खड़े हैं बात उनकी भी करें  रास्ते पर जो पड़े हैं बात उनकी भी करें  हौसलों से कुछ बुलंदी को रहे हैं चूमते  बेबसी में जो अड़े हैं बात उनकी भी करें  आए हैं कुछ आसमां से किस्मतों का बाग़ ले  किस्मतों से कुछ लड़े हैं बात उनकी भी करें पीढ़ियों का उड़ते जाना देखते हैं हम सभी  छूटते घर में बड…
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*माँ तो बस माँ होती है*
घर की खिलती फुलवारी का मां खुद बीज, खुद तना होती है मां तो बस मां होती है।  मेरी ही जिद पूरी करने मां से कहाँ मना होती है मां तो बस मां होती है।  इज्जत वाले परिवारों की मां खुद एक अना होती है मां तो बस मां होत मां तो बस मां होती है मेरी पूरी एक जहाँ होती है।  दिखती मुझको इधर-उधर जाने कब कहाँ-कहाँ…
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*सोच के शिकार*
अकस्मात मन में आया एक विचार लोग हो गये हैं सोच के शिकार,  नित बदल रहा ये समाज  क्या पतन का हो गया आगाज़?  जँहा, शिक्षा बन गया व्यापार,  नारी हो रही शर्मशार,  वृद्ध हो गये लाचार,  लोग भूले गीता का शार। ना अर्थ रहा निर्वाह के संवाद का,  तासीर है बातों में विवाद का,  अब जोर है आतंकवाद का,  यही सोच है …
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