धर्म का लक्ष्य हंसाना है, न कि रुलाना...…
यदि कोई धर्म रुलाने का, कर रहा कर्म, वह धर्म नहीं। यदि करता कर्म रुलाने का, वह है कुकर्म, सत्कर्म नहीं। आनंद देख, आनंद मिले, ‘आनंद’ वही कहलाता है। आनंद देख, कंप गयी रूह, वह घृणित कुकर्म कहाता है। श्रष्टा से होता, सृष्टि- सृजन, है लक्ष्य मात्र, आनंद एक। आनंद सदा हो आवंटित, हो हिये सजा, बस भाव …
