पत्नी और आधुनिक प्रेमिका में अंतर...…

 


पत्नी है  जहां, संगठन है,

प्रियतमा जहां, विघटन होगा।

खिलते परिवार, पत्नियों संग,

प्रेमिका, न चैन, घुटन होगा।


चलनी के, छेद हजारों में,

पत्नी पाती, पति परमेश्वर।

निज बेटी-बेटा, सास-ससुर,

में रमी, पा रही जगदीश्वर।


वैज्ञानिक बेटा, बना रही,

बेटी बन रही, किरण बेदी।

पति सत्यवान को छुड़ा रही,

जो जा पहुंचा, यम की गोदी।


साक्षात् लक्ष्मी पत्नी बन,

पति पर सर्वस्व लुटाती है।

वह निज पति को, निज जान, मान,

अर्पित, स्वाहा हो जाती है।


प्रियतमा प्रेम का मोल-तोल कर,

ढोल बजा कर गाती है। 

प्रेमी को चाकर बना,

सदा पैरों पर, खड़ा नचाती है। 


नित, पांच-सितारा होटल में,

प्रियतमा रही कर, डांस झूम।

प्रेमी को कर, दूसरी ओर,

वह अन्य रसिक को, रही चूम।


तप छीन, सकल मुनिवृदों का,

ज्यौं, उर्वशियां कर गायन हैं।

त्यौं, बजा प्रेमियों का, बाजा,

करतीं प्रियतमा, पलायन हैं।


पत्नी सर्वदा प्रियतमा है,

प्रियतमा सदा साधन-भोगी।

पत्नी करतीं हैं स्वर्ग-सृजन,

प्रियतमा नर्क दे, कर रोगी।


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन..…


महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 



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