हे श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, महान और बुद्धिमान मानव !
कहाँ रहते हो आजकल ?
कहीं दिखते नहीं हो, अनगिनत अत्याधुनिक हाइटेक दूरबीनों से भी देखने पर।
हे मेरे बसुन्धरा के आर्यभट्ट, वराहमिहिर, चरक, सुश्रुत और नागार्जुन,
कहीं फिर तो नहीं चले गए,
किसी अनंत अनजान कन्दरा और गुफा में अनंत काल के लिए।
या हे मेरे प्रिय शुद्धोधन पुत्र सिद्धार्थ,
कहीं फिर तो समाधिस्थ नहीं हो गये,
सोती हुई बसुन्धरा और राहुल को छोड़कर,
किसी बोधगया में वट-वृक्ष के नीचे दुःख का औजार खोजने के लिए।
मनुष्यता आज फिर करूण-क्रंदन कर रहीं हैं ,
चीख चीत्कार रोना-गाना बदस्तूर जारी है,
अपनों से बिछड़ने के गम में कराहें चिल्लाहटे और छटपटाहटे सुनसान सन्नाटे को चीर रहीं हैं।
हर चट्टी चौराहे पंगडडियो और चारकतारी सडको पर,
लुट रही है इज्जत अस्मिता अस्मत हर द्रौपदी की,
पर तुम कहाँ हो हे गोवर्धन धारी योगीराज श्री कृष्ण।
मेरी वैज्ञानिक आंखें ढंग से तुम्हें जानती पहचानती है,
मेरी तार्किक और आध्यात्मिक इन्द्रियां खूब परिचित हैं और समझती बूझती हैं,
तुम्हारी हर हरकत चाल ढाल रंग रूप और अंदाज को।
तुम उस उन्मादी भीड का हिस्सा कत्तई नहीं हो,
जो जातिवादी साम्प्रदायिक उन्माद के सिर्फ नारे लगाना जानती है।
तुम उन सफेदपोश खद्दरधारी तथा-कथित बगुलाधारी सियासी सूरमाओं की फेहरिस्त में भी नहीं हो,
तुम झूठ जुमलो कोरे वादों कागजी भाषणों पर लट्टू की तरह नाचने वाली भीड़ में भी नहीं हो।
तुम उन तेजडिया और मंदडिया बुलडागो में भी नहीं हो,
जो बाजार के चढते उतरते शेयर सूचकांकों के थर्मामीटर से देश का विकास मापते हो,
तुम सृजनात्मक रचनात्मक सकारात्मक चेतना से लबरेज़ हो लबालब हो,
इसलिए हर संकट के दौर में भूखमरी बेबसी लाचारी बेरोजगारी का इलाज ढूँढना जानते हो,
लौट आओ अपनी तपस्याओं साधनाओं गुफाओं कन्दराओं से,
अपने एकाग्रचित एकनिष्ठ समाधिस्थ स्थलो से,
क्योंकि मानवता फिर त्राहि त्राहि कर रहीं हैं कराह रही है।
तुम्हे एकाग्रचित एकनिष्ठ नहीं समदर्शी होना हैं।
तुम्हें एकाकी नहीं सर्वसमावेशी और सर्वसमाजी होना है।
तुम्हें अंततः अंधभक्त अंधविश्वासी नहीं अव्वल दर्जे का तार्किक और वैज्ञानिक होना है,
तुम जहाँ चाहे मदहोश रहो बेहोश रहो पर मानवता के लिए सर्वदा सर्वत्र होश में रहना है।
तुम्हे हमेशा सावधान सजग सचेत रहना है,
सफेदपोश सियासी सूरमाओं की गिरगिरटियाॅ चालों से ।
तुम न्यूटन हो,तुम कोपरनिकस हो, तुम बीरबल साहनी हो
क्योंकि तुम खोज में लगे हो सत्य के सच्चे साधकों की तरह बेहतर दुनिया बनाने के लिए।
महामारियों के दौर के असली एडवर्ड जेनर हो,
ढूंढ लाते हो कोई न कोई टीका ज़िन्दगियाँ बचाने के लिए।
हे महान जोसेफ प्रिस्टले एक न एक दिन वह ऑक्सीजन भी जरूर बनायोगे अपनी प्रयोगशाला में,
जिससे महज इंसान की नहीं इंसानियत की सांसें भी चलती रहेगी।
इसलिए अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए लौट आओ बुद्धिमान होने का सबूत देने के लिए।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।
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