पितृ परम्परा के वंदना का व्रत है पितृपक्ष : डॉ. विद्यासागर उपाध्याय
यथा वृष्टिं प्रतीक्षन्ते भूमिष्ठा: सर्वजनत्व:। पितरश्च तथा लोके पितृमेधं शुभेक्षणे।। अर्थात हे शुभेक्षणे! जैसे भूमि पर रहने वाले सभी प्राणी वर्षा की बाट जोहते हैं, उसी प्रकार पितृ लोक में रहने वाले पितर श्राद्ध की प्रतीक्षा करते रहते हैं। (महाभारतअनुशासन पर्व 145/12) इस सृष्टि में प्रत्य…
