पितृ पक्ष : ऐसा कुंड जहां भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, जानें कहां है ये नगरी


धर्म की नगरी काशी में वैसे तो मणिकर्णिका घाट को मुक्ति की स्थली कहा जाता है. लेकिन, अपने पितरों की मुक्ति की कामना से पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृ पक्ष के महीने में यहां जुटती है.

महादेव की नगरी वाराणसी को मोक्ष की नगरी भी कही जाती है. ऐसी मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने वाले मनुष्यों को भगवान भोले नाथ खुद मोक्ष प्रदान करते हैं. लेकिन, जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मौत के शिकार होते हैं, उनके मोक्ष के लिए यहां के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पिशाचमोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ आती है. काशी के अति प्राचीन पिशाचमोचन कुंड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध के साथ ये मान्यता जुड़ी है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है.

गरुण पुराण में है वर्णन :

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने सृष्टि की रचना का प्रारंभ यहीं से किया था. यह सर्वविदित है कि जो भी इंसान यहां अंतिम सांस लेता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. कई लोग तो सिर्फ इसी वजह से अपने अंतिम समय में काशी में ही आकर बस जाते हैं. मोक्ष नगरी काशी में चेतगंज थाने के पास पिशाचमोचन कुंड स्थित है. 

ऐसी मान्यता है कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद होने वाली दिक्कतों से मुक्ति मिल जाती है. इसीलिए पितृ पक्ष के दिनों में पिशाच कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है. श्राद्ध की इस विधि और पिशाचमोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है.

सिर्फ काशी में होती है त्रिपिंडि श्राद्ध :

देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाचमोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है. इस श्राद्ध कार्य में इस विमल तीर्थ पर संस्कृत के श्लोकों के साथ तीन मिटटी के कलश की स्थापना की जाती है. जो काले, लाल और सफेद झंडों से प्रतिकमान होते हैं. प्रेत बाधाएं तीन तरह की मानी जाती हैं. सात्विक, राजस, और तामस. इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं. जिसको कि भगवन शंकर, ब्रह्मा, और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है.

कर्मकांड के बाद गया में किया जाता है पिंड दान :

धर्म की नगरी काशी में वैसे तो मणिकर्णिका घाट को मुक्ति की स्थली कहा जाता है. लेकिन, अपने पितरों की मुक्ति की कामना से पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृ पक्ष के महीने में यहां जुटती है. यहां पिंड दान और तर्पण करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. यहां पिंड दान करने के बाद ही लोग गया जाते हैं. धार्मिक स्थली पिशाचमोचन के साथ ये मान्यता जुडी हुई है. यहां का तर्पण का कर्मकांड करने के बाद ही गया में पिंड दान किया जाता है, ताकि पितरों के लिए स्वर्ग का द्वार खुल सके.

साभार- जी न्यूज






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