ग़ज़ल
थी कभी हासिल वफादारों की भीड़ अब तो है हरसू सितमगारों की भीड़ नाम पर अपनों के अब तो रह गयी जिंदगी में बस अदाकारों की भीड़ रात-भर ये चाँद तन्हा ही रहा यूँ तो उसके ग़िर्द थी तारों की भीड़ मंदिरों-मस्जिद में लेती है पनाह या ख़ुदा अब तो गुन्हगारों की भीड़ ज़ेह्र में अब सिर्फ हैं अय्यारियां और होंठो पर फ…