*मन की ख्वाहिश*
कुछ बात बतानी होती है कुछ राज छुपाने होते हैं जीवन में झमेले हैं इतने कभी हँसते हैं कभी रोते हैं ख्वाहिश है कुछ तो अलग करें पहचान नाम भी हो अपना मिलता है किस्मत वालों को मेरा तो अधूरा है सपना जीते जी याद करो न करो जाना न भूल जब मर जायें कोरे कागज पर छप न सकी …
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मोहब्बत उम्मीद से कम हो तो सजाये मौत दे देना.....
राहे जुदा जुदा है तो कुछ गम न कीजिये !! हम आलम-ए-ख्याल में हैं बस आप ही के साथ..!! हमारे दरमियान फासले बहुत है !! मंजिल साथ ही पहुँचना हैं !! गलतफहमी की गुंजाइश नही !! सच्ची मोहब्बत में !! जहाँ किरदार हल्का हो !! वहाँ प्रेम कहानियां डुब जाया करती हैं !! तुम आओ और कभी दस्तक तो दो इस पर !! मोहब्बत उम…
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बहुत खूबसूरत हो तुम?
बहुत खूबसूरत हो तुम, मेरी रूह के रहनुमा रहगुजर, दिल की दौलत, सांसों के स्वर, भटके मुसाफिर की मुकम्मल डगर  मेरी धडकनो की जरूरत हो तुम। बहुत खूबसूरत हो तुम।  संगतराशो की फनकारी के फन से  निकल कर , नक्काशी की जद-हद से बाहर  निकलकर, करिश्मों के जलवे से आगे निकल कर  खुद से तराशी हुई अजंता की मूरत हो तुम…
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अगर इश्क करो तो वफ़ा भी सीखो साहब.....
आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए, शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-खुशी कर ली !! वो तो आँखे थी जो सब सच बयां कर गयी,  वरना लफ़्ज होते तो कब के मुकर गए होते !! अगर इश्क करो तो वफ़ा भी सीखो साहब !! ये चंद दिन की बेकरारी मुहब्बत नहीं होती !! वो हैरान है मेरे सब्र पर तो उन्हें कह दो !! जो आंसू दामन पर नहीं…
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*संघर्ष*
हां सुनो  अब मेरे लिये त्यौहार मायने नही रखते मायने रखती है तो अब बस वो मंजिल जिसके लिये ना जाने कितने ख्वाब देखे है मैने  और ....सबने....  बेसब्री से उसके टुट जाने का  अब दिवाली के पटाखों में वो शोर कहा... जो मेरे जहन के शोर को चीर सके  रंगोली के रंगो मे अब दिल की उदासी बखुबी दिख जाती है  हम्म ...…
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आज फिर एक नई शुरुआत करते है
चलो आज फिर एक नई शुरुआत करते है  देर हो चुकी है बहुत  पर आज से ही कल का आगाज करते है  मिलों पीछे ठहरने वाले  आज आगे निकल चुके है  जो पुछा करते थे कितबों के  सवाल  ......कभी मुझसे  आज वो नवाब बने फिरते है    देर हो चुकी है बहुत  पर आज से ही कल का आगाज करते है  सपना  बुलंदियो को छूने का ..... कभी र…
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*अनसुलझी सी जिंदगी*
जब बैठे बैठे कुछ करने को नहीं सुझता है तब; बस यूँ  ही कुछ दूर कविताओं के संग सफर तय कर लेते है..... खुद में खोई खोई हूँ जाने किस सवाल में  खुद को ढूंढा करती हूँ जाने किस जवाब में  पहेली नहीं हूँ फिर भी अनसुलझी हूँ  सीसा (कांच) नहीं हूँ फिर भी बिखरी हुई हूँ  जाने किस गुत्थी में उलझी हुई हूँ  खुद के …
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*हृदय गति*
जिसे सोच कर मुस्कुरा दो तुम, मैं वो स्मृति होना चाहती हूं, मैं तुम्हें बनाकर हृदय पिया, तुम्हारी गति होना चाहती हूं, हमारे मिलन वियोग पर जो लिखोगे कविताएं कभी तुम, श्रृंगार रस मिली कि तुम्हारी कविता की रति होना चाहती हूं! मैं तुम्हें बना कर हृदय प्रिया तुम्हारी गति होना चाहती हूं..... हां तुम हो वै…
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कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में ?
आ गया बसंत लेकर मकरकंद बहार, कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में ? खेतों में पियराई सरसों करती मनुहार,  चहुॅओर वसुंधरा करती सोलह श्रृंगार, झुरमुटों से कोयल कूॅकती बारम्बार  चल रही मस्त, मन्द, मादक बयार। आ गया बसंत लेकर मकरंद बहार  कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में ? चहकती बुलबुल डाली-डाली द्वार-द्वार  वन व…
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भचर-भचर भड़काऊ भाषण से भाईचारा तोड़ रहे हैं नेताजी
चुनाव दर चुनाव जनसेवा की दुहाई देकर, नींबू की तरह जी भरकर जनता को निचोड़ रहे हैं नेताजी।  काम-धाम कुछ नहीं, घूम-फिरकर  जाति-बिरादरी की इकाई दहाई सैकड़ा जोड़ रहे हैं नेताजी।  जनता जाए भांड में, कानून रख कर ताख़ पर, भचर-भचर भड़काऊ भाषण से भाईचारा तोड़ रहे हैं नेताजी।  सूझ-बूझ समझदारी से कोसों दूर है  …
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"शरद" शिशिर
प्रेम-प्रिति की बातें कितनी सच्ची है बतलाती है शिशिर जवानी पर जब आती मुफ़लिस को दहलाती है वियोगियों की आड़ छुपकर लिखते हैं कविजन शिशिर वेदना अपनी ही तो कलम बहुत ही कम लोगों की निष्ठुर सत्य सजाती है कल से शरद जवानी पर है उसके साथ घटा कमसिन सर्द हवा सिहराती तन-मन दिल में हुक उठाती है मेरे आँखों की को…
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*दीपों का प्रकाश*
चौदह वर्ष के बाद, श्री राम -लखन और सियाजी वनवास काटकर आये थे। बुराई पर अच्छाई की जीत के, सबने.....रघुवर  के गुण गए थे। रघुनन्दन के स्वागत में, अयोध्या खूब सजाई थी। दीपों के प्रकाश पुंज में, माँ सीता .....लक्ष्मी बनकर आयी थीं। चहूँ ओर अवध पुरी में, खूब ढ़ोल, ढमाके, बाजे थे। बूढ़े, बच्चे, और जवान  सब, …
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आओ मिलकर दिया जलाएं
अंधकारमय झोपड़ियों से तिमिर मिटाएं। याद करे हम ज्ञान ध्वजा की जीर्ण-शीर्ण नालन्दा को, तक्षशिला और बोधगया का बोध कराए भूलें-भटकें युवकों को, आर्यभट्ट और वराहमिहिर का पाठ पढाएं नूतन पीढी  को, गुरु वशिष्ठ की ज्ञान-धरा पर ज्ञान बोध और प्रज्ञा का दीप जला कर, संत विनोबा के सपनों की फिर सर्वोदयी मशाल जलाए,…
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प्यारे गुरु की महानता
गहन तिमिर को दूर कर, ले जाते हैं प्रकाश-पुंज की ओर गुरु। भटके हुए शिष्य की अंगुली पकड़, शूल पर चलना सिखाते हैं गुरु। शिष्य के अज्ञानता को, ज्ञानवर्धक बना देते हैं गुरु। ज्ञान से जड़ चेतन को मजबूत बना, भविष्य को सुनहरा बनाते हैं मात- पिता व गुरु। चुनौतीयों से भरे जीवन को, उज्ज्वल भविष्य का मार्ग दिखात…
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अब झंडे में नहीं झलकता जनता का दर्द.....
हजारों पंजीकृत राजनीतिक दल, और जितने तरह के राजनीतिक दल  उतने तरह के लाल, पीले, नीले, हरे  एक रंगी, द्विरंगी और बहुरंगी झंडे  पर किसी झंडे में, न तो जनता का दर्द दिखाई देता है,  न आम जनमानस की आम समस्याएं।  आज हर झंडे बबहुराष्ट्रीय कम्पनियो के विज्ञापन की तरह हो गये हैं, आज झंडे में झलकने लगी हैं…
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मेरे प्यारे प्रियतम !
मैंने टूट-टूट कर किया है, तुम रूठे हो! तुम्हारी मर्जी, पर प्यार मैंने तुमसे अटूट किया है। दिल तडपता ही रहता हैं, बिना थके और बिना हारे  तुम्हारी बेरूखी, बेरहमी तुम्हारी बेदर्दी और तुम्हारी बेवफाई की कोख़ से उपजे   हर जख्म, हर दर्द और कभी-कभी खुशी के हसींन लम्हे  मैंने अपने दिल की खूबसूरत अलमारियो…
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छिलका की व्यथा कथा--
मैं छिलका हूँ  कभी जाना है आपने, मेरी व्यथा कथा, मेरी पीड़ा, मेरा दुःख दर्द, सेव हो, अनार हो, आम हो, संतरा हो  या चिनिया बादाम के नाम से मशहूर  मूंगफली हो, या और कोई मौसमी फल, छिलकर या दाॅत से चिचोडकर, फेंक दी जाती हूँ कूड़ेदान में। तथाकथित सभ्य, सुसंस्कृत  रसूखदार ओहदेदार, और शहरी मिज़ाज के लोग  मु…
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ओढ़कर धानी चुनरिया
ओढ़कर धानी चुनरिया वर्षा  की  बूंदों  ने, धरा  का  किया  श्रृंगार । ओढ़कर धानी चुनरिया, धरा हुई खुशहाल। रिमझिम रिमझिम बरखा से, धरा में उठी उमंग। वन उपवन भी महक उठे, हरियाली के संग। चाहूँ ओर लहरा रहे, खेत और खलियान। मानो ऐसा लग रहा, मिली पिया से आज। अम्बर कलेजा चीर कर, बरसाये प्यार की बौछार। सावन की ऋ…
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