*हृदय गति*

जिसे सोच कर मुस्कुरा दो तुम, मैं वो स्मृति होना चाहती हूं,

मैं तुम्हें बनाकर हृदय पिया, तुम्हारी गति होना चाहती हूं,

हमारे मिलन वियोग पर जो लिखोगे कविताएं कभी तुम, श्रृंगार रस मिली कि तुम्हारी कविता की रति होना चाहती हूं!

मैं तुम्हें बना कर हृदय प्रिया तुम्हारी गति होना चाहती हूं.....

हां तुम हो वैरागी जाने हैं मन, बस तुमको अपना माने है मन,

यदि शंकर से गुण है तुझमें तो, मैं भी सती होना चाहती हूं,

मैं तुम्हें बनाकर ह्रदय पिया तुम्हारी गति होना चाहती हूं.....

जीवन काव्य मेरा अलंकृत करो, तुम रस बनो या छंद बनो, बस मुझ पर आकर ठहर सको,

हर चरण कि यति होना चाहती हूं,

मैं तुम्हें मना कर हृदय पिया तुम्हारी गति होना चाहती हूं....

जो अमिट हो तेरे नाम में आकृति होना चाहती हूं,

अगर है तू रचनाकार पिया,तो मैं कृति होना चाहती हूं,

मैं तुम्हें बनाकर हृदय पिया तुम्हारी गति होना चाहती हूं.....


मौलिक्षा सिंह

नगरा बलिया।

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