मैं छिलका हूँ
कभी जाना है आपने,
मेरी व्यथा कथा,
मेरी पीड़ा, मेरा दुःख दर्द,
सेव हो, अनार हो, आम हो, संतरा हो
या चिनिया बादाम के नाम से मशहूर
मूंगफली हो,
या और कोई मौसमी फल,
छिलकर या दाॅत से चिचोडकर,
फेंक दी जाती हूँ कूड़ेदान में।
तथाकथित सभ्य, सुसंस्कृत
रसूखदार ओहदेदार,
और शहरी मिज़ाज के लोग
मुझे छिलकर खाने में
स्वयं को शिक्षित, सुसंस्कृत
और सभ्य होने का
परिचय देते हैं।
परन्तु दौलत शोहरत बुलंदियों
के नशे में चूर और मगरूर,
ये नहीं जानते हैं कि-
हर मौसम के लूह--थपेडों
सर्दी-गर्मी और बारिश को झेल कर
सुरक्षित और संरक्षित रखती हूँ
सारा प्रोटीन,सारा विटामिन
सारा कार्बोहाइड्रेट
और सारे पोषक तत्व
सभी ताजे मौसमी फलों के अन्दर।
लोग मुझे बेकार व्यर्थ बेमतलब का
समझकर जानवरों का भोजन बना देते हैं।
मै सुरक्षा कवच हूँ फलों की
ताजगी और स्वाद का।
मेरा कोई स्वाद नहीं हैं
न ही मेरी कोई सुगंध हैं,
यही समझकर फेंक देते हैं लोग
किसी नाली नाबदान में
और मैं सडती रहती हूँ ताउम्र।
पर हे ज्ञानी मानव!
विज्ञान के क्षेत्र में चमत्कार करने वाले
तुम नहीं जानते मै बेशकीमती हूँ,
जिसने मुझको साधना से
जाना समझा और परखा है
वही जानते हैं मेरी अहमियत,
चरक सुश्रुत पतंजलि जैसे
साधक जानते हैं मेरी कीमत
मै कई लाइलाज बीमारियों की दवा हूँ
मत फेंको मुझे हिकारत भरी नजरों से,
मेरे वजूद को सच्चे मन से
तलाशोगे तराशोंगे
तो मिल सकता हैं
औषधि का खजाना
मेरे भी विधाता की सृष्टि का
सुनिश्चित उद्देश्य हेतु सृजन हूँ
सृजन में यकीन रखने वालों
मेरे वजूद में मेरा रहस्य है
मेरे रहस्य में गोते लगाओ,
मिल सकता है
तुम्हारी तंदरुस्ती का रहस्य।
इसलिए मुझे भी यथोचित सम्मान दो,
मै छिलका हूँ
समझो मेरी व्यथा कथा।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ
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