आज फिर एक नई शुरुआत करते है

 


चलो आज फिर एक नई शुरुआत करते है 

देर हो चुकी है बहुत 

पर आज से ही कल का आगाज करते है 


मिलों पीछे ठहरने वाले 

आज आगे निकल चुके है 

जो पुछा करते थे कितबों के  सवाल  ......कभी मुझसे 

आज वो नवाब बने फिरते है 

  देर हो चुकी है बहुत 

पर आज से ही कल का आगाज करते है 


सपना  बुलंदियो को छूने का ..... कभी रहा ही नही 

मुझे तो ज़मीन की गोद मे ठहरना था 

चलना था मिलों दूर तक  मुझे 

करना था बहुत कुछ सफर में ......

पर पैसे  कमाने की दौड़  में 

ये कहाँ आ गये हम 


देर बहुत हो चुकी है 

पर आज से ही कल का आगाज करते है हम


भटके हुये को रस्ता दिखाना चाहते थे पर 

समाज  के जन्जाल में खुद ही फंस गये हम 

रितियों की बेड़ियो में कुछ ऐसे बँध गये हम 

खुद के उम्मीदों का गला घोटत रहे हम 


एहसास है मुझे 

देर बहुत हो चुकी है 

पर आज से कल का  आगाज करते है 


रंजना यादव 

बलिया। 




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