वर्षा की बूंदों ने, धरा का किया श्रृंगार ।
ओढ़कर धानी चुनरिया, धरा हुई खुशहाल।
रिमझिम रिमझिम बरखा से, धरा में उठी उमंग।
वन उपवन भी महक उठे, हरियाली के संग।
चाहूँ ओर लहरा रहे, खेत और खलियान।
मानो ऐसा लग रहा, मिली पिया से आज।
अम्बर कलेजा चीर कर, बरसाये प्यार की बौछार।
सावन की ऋतु आयी है, जीवन हुआ गुलज़ार।
प्यासे पंछी झूम उठे, अम्बर से गिरी बरखा की धार।
मोर, पपीहा, जीव जंतु ने, खूब किया उल्लास।
हरी चूड़ियाँ खनक उठीं, झूले पड़ गए आज।
सखियों के संग गव रहे, सावन के गीत मल्हार।
स्वरचित व मौलिक
मानसी मित्तल
शिकारपुर
जिला बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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