आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए,
शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-खुशी कर ली !!
वो तो आँखे थी जो सब सच बयां कर गयी,
वरना लफ़्ज होते तो कब के मुकर गए होते !!
अगर इश्क करो तो वफ़ा भी सीखो साहब !!
ये चंद दिन की बेकरारी मुहब्बत नहीं होती !!
वो हैरान है मेरे सब्र पर तो उन्हें कह दो !!
जो आंसू दामन पर नहीं गिरते वो दिल चिर देते है !!
तेरी मजबूरिया भी होगी चलो मान लेते है !!
मगर तेरा वादा भी था मुझे याद रखने का !!
रात को सोते हुए एक बेवजह सा ख़याल आया !!
सुबह उठ न पाऊँ तो क्या उसे ख़बर मिलेगी कभी !!
बड़ा सख्त मिजाज है वो शख्स !!
उसे याद रहता है की मुझे याद नहीं करना !!
क्या इतनी दूर निकल आये है हम !!
की तेरे ख्यालों में भी नहीं आते !!
तुम ना मौसम थे ना किस्मत, ना तारीख, ना ही दिन !!
किसको मालूम था की इस तरह बदल जाओगे !!
उसकी ज़िंदगी में थोड़ी सी जगह माँगी थी मुसाफिरों की तरह!!
उसने तन्हाईयों का पूरा एक शहर मेरे नाम कर दिया !!
तुम्हे हक है अपनी ज़िन्दगी जैसे चाहे जियो तुम !!
बस जरा एक पल के लिए सोचना की मेरी जिंदगी हो तुम !!
हमारे शहर आ जाओ सदा बरसात रहती है !!
कभी बादल बरसते है तो कभी आँखें बरसती है !!
जवाब तो था मेरे पास उन के हर सवाल का पर !!
खामोश रहकर मैंने उनको लाजवाब बना दिया !!
मीना सिंह राठौर ✍🏻
नोएडा, उत्तर प्रदेश।
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