आ गया बसंत लेकर मकरकंद बहार,
कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में ?
खेतों में पियराई सरसों करती मनुहार,
चहुॅओर वसुंधरा करती सोलह श्रृंगार,
झुरमुटों से कोयल कूॅकती बारम्बार
चल रही मस्त, मन्द, मादक बयार।
आ गया बसंत लेकर मकरंद बहार
कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में ?
चहकती बुलबुल डाली-डाली द्वार-द्वार
वन वाटिका बाग तडांग सब गुलजार
खग-मृग पशु मिलकर गा रहे मल्हार
यौवन से हठखेली करती फगुआ फुहार
आ गया बसंत लेकर मकरंद बहार,
कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में।
गेंदा गुलाब गुड़हल गुलमोहर करते गुहार
चम्पा चमेली जूही कनेर सृष्टि का बन गए हार
सौन्दर्य अलौकिक दिग दिगंत गगन रहा निहार
तरसत तडपत हृदय,व्याकुल नैनन में तेरा इंतज़ार
आ गया बसंत लेकर मकरंद बहार
कब आओगे मेरे निर्जन मधुबन में।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।
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