*दीपों का प्रकाश*


चौदह वर्ष के बाद, श्री राम -लखन और सियाजी

वनवास काटकर आये थे।

बुराई पर अच्छाई की जीत के,

सबने.....रघुवर  के गुण गए थे।


रघुनन्दन के स्वागत में, अयोध्या खूब सजाई थी।

दीपों के प्रकाश पुंज में, माँ सीता .....लक्ष्मी बनकर आयी थीं।


चहूँ ओर अवध पुरी में, खूब ढ़ोल, ढमाके, बाजे थे।

बूढ़े, बच्चे, और जवान  सब, झूम झूमकर नाचे थे।


जगमग जगमग दीप जलाकर, प्रजा ने भवन सजाए थे।

अपने घर की चौखट पर, सभी ने वंदरवार लगाए थे।


वैसे तो......

दीवाली के शुभ अवसर पर,होती अमावस की रात है।

घोर तिमिर को दूर भगाकर, दीपों का फैला प्रकाश है।


जगमग जगमग दीपों से,अम्बर, धरा भी दमक उठे ।

वो स्वर्ण सी उजली किरणें से,उर में नव उजास भरे।


इस पवन पर्व की बेला पर, बच्चे भी हर्षित होते हैं।

उत्साह और उमंगों से, फुले नहीं समाते हैं।


अनार, फुलझड़ी, और पटाखों से, आकाश सतरंगी सा लगता है।

रंग-बिरंगी धरती माँ का भी, रूप दुल्हन सा लगता है।


खील, बताशे, और मीठे, मेवों  से, हाट, बाजार भी सजते हैं।

झिलमिल झिलमिल दीपों से, सारे जग को रोशन करते हैं।


लक्ष्मी जी के स्वागत  में, सजा रहे सब तोरण द्वार हैं।

युगों युगों से  इस तरह, मना रहे हम पावन त्यौहार  हैं।


आओ हम सब मिलकर, बस एक यही संकल्प करें।

भेद-भाव और  राग-द्वेष को, अपने मन से दूर करें।


दीवाली का यह शुभ दिन, सुख समृद्धि, लेकर आता है।

महके ये त्यौहार सभी का,भोर खुशियों की लाता है।











स्वरचित✍️

मानसी मित्तल

उत्तर प्रदेश

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