मैंने टूट-टूट कर किया है,
तुम रूठे हो! तुम्हारी मर्जी,
पर प्यार मैंने तुमसे अटूट किया है।
दिल तडपता ही रहता हैं,
बिना थके और बिना हारे
तुम्हारी बेरूखी, बेरहमी
तुम्हारी बेदर्दी और तुम्हारी बेवफाई
की कोख़ से उपजे
हर जख्म, हर दर्द और
कभी-कभी खुशी के हसींन लम्हे
मैंने अपने दिल की खूबसूरत अलमारियों में,
अपनी सुनहरी प्यार-मुहब्बत की किताबों में,
अपने सपनों की ताजमहल सी संगमरमरी इमारतों में,
बडे सलीके से रक्खा हैं,
साफ सुथरे निर्मल कोने में
सहेजकर अब तलक।
तुम्हारे दर्द ही मेरी बेशकीमती दौलत है,
और खूबसूरत मिसाल है,
हर दौर की बेइतिंहा
मुहब्बत के पैमाने के,
तेरी बेवफाई के बावजूद
मेरा दिल जिद्दी है और हठी भी हैं
तुम्हें अनुपम, अगाध कहता है
इसलिए प्यार भी तुमसे
ना जाने क्यों अथाह करता है।
कांटो से सजी राहों पर
फूल बिछाता रहता हूँ,
जख्म और दर्द की
जागीर लिये सीने में,
लहू-लुहान हाँथों से भी
गेंदा गुलाब गुड़हल लगाता रहता हूँ,
ताकि-तुम्हारे चाहतो की
हर राह महकती रहे,
और तेरी मंजिलों का
हर मौसम सदाबहार रहे,
इसलिए जख्मी जमीन पर भी
केसर की क्यारियाँ सजाता रहता हूँ।
दिल को बड़ा गुरूर हैं
अपने दिये जख्मो से
भेंट-मुलाकात करने के बहाने,
बादलों की तरह बेवफा बनकर
इक दिन जरूर आवोगें
तो तुम्हें राहों में न कांटे चुभेगें
न गर्दो-गुबांर मिलेंगे,
न गर्दिशे मिलेंगी
क्योंकि-काॅटो से भरी राहों को
बुहारा हैं मैंने बडी तमन्नाओं से
मेरे दिल के अनूठे प्रियतम !
जब निहारोगे निर्द्वन्द्व
तो तुम्हें नजर आयेगा,
अपने जख्मी हृदय पर भी
बोए हैं हमने चम्पा, चमेली
और जूही के बिरवाॅ,
जो तुम्हारी थकन को मिटाकर
सुकून की आगोश में भींच लेगे।
जब कभी आवोगें प्रियतम मेरे !
मेरे प्यारे प्रियतम ! मेरे अद्वितीय प्रियतम ! ।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज, दरगाह, मऊ।
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