*दिल का झरोखा*
सुनो तो माधव!! झाकूँ मैं मन के, झरोखे से तुझको, जी चाहता है बैठा लूँ, पलकों पर तुझको। तड़प रही हैं अखियाँ अब तो, जैसे.. जल बिन मछली, तड़पे जीवन को। सुनो तो माधव.... खोल दो खिड़की अब तोअपने दर की, अर्जी लगा के खड़ी हूँ कब की। सुना दो अपने प्रेम की वंशी, थाम लो बैयाँ अपने भक्तन की। सुनो तो माधव...... भ…
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भगवान बनने का अमोघ मंत्र....…..
यदि, किसी पीड़ित की पीड़ा, है मिटाई आपने। नैराश्य-नद, में डूबते को, है बचाईं, आपने। चलचित्र सी, पीड़ा झलकती, देख, ब्याकुल चेहरा, सहयोग-मृदु-अमृत, पिलाकर के, मिटाई आपने। दीन-हीन-मलीन-वंचित-क्षुधित-आर्त-क्षुधार्त को, स्वयं  की  ब्यंजन-भरी, थाली  खिलाई, आपने। बन  गये  तब, आप  समझो, शेबरी  के, राम है…
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*मैं एक लड़की हूँ ना ?*
बेटी के रुप में माँ बाप की इज्जत बचाना था !! कहीं जाने से पहले माँ बाप की इजाजत लेनी चाहिए !! यही सुन कर बड़ी हुई !!  जब इस दुनिया में मै आई !! माँ के कोख से जनम लिया !! तब किसी ने मिठाई नही बाटी !! मैं एक लड़की हूँ ना ?  बहुत कुछ हुनर था मन के अंदर बहुत कुछ करने का शौक भी था !! लेकिन कौन कहता कि…
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क्यूँ मेरी चाहत को कोई किनारा ना मिला !!
उससे ताल्लुक ही कुछ ऐसा रहा है मेरा, की जब भी सोचा उसे तो आँखें भर आयी !! एक बार दीदार कर लो मेरा मेरे चेहरे से कफ़न हटा कर,!! वो आँखे बंद हो गयी है जिन्हे तुम रुलाया करते थे !! कहाँ डूब गई कश्ती मेरी वफाओं की !! क्यूँ मेरी चाहत को कोई किनारा ना मिला !! एक वक्त था जब बातें ही खत्म नहीं होती थी !! आ…
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*परमात्मा, मानव एवं सत्कर्म...…*
परम पिता परमेश्वर ने, रच सुंदर तन, दे सुघर रूप। अनुनय कर रहे, आत्मा से, कर ग्रहण, मनुज-तन, मम् स्वरूप। इस तन को साधन बना, धरा पर, जाकर के सत्कर्म करो। जा आर्त-प्राणि-पीडा हर कर, पर-पीडा-हारी-धर्म, करो। तज स्वार्थ, सदा रत हो, परार्थ,  छल-छद्म-घृणा से दूर रहो। तुम बनो, पुस्तकें खुली, सदा, संदेह-विगत,…
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कुछ कहानियां अक्सर अधुरी रह जाती है !!
उजाड़ के मेरी दुनिया कितने खुश है वो,!! जो कभी हमारे थोड़े से रुठने पे खुद भी रोया करते थे !! कुछ कहानियाँ अक्सर अधूरी रह जाती है,!! कभी पन्ने कम प़ड़ जाते है तो कभी स्याही सूख जाती है !! वो मेरे रुबरु आया भी तो बारीशों के मौसम में,!! मेरे आंसु बह रहे थे और वो बरसात समझ बैठा !! उसे मेरी मौत की खबर …
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"हे श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, महान और बुद्धिमान मानव कहाँ हो तुम"
हे श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, महान और बुद्धिमान मानव ! कहाँ रहते हो आजकल ? कहीं दिखते नहीं हो, अनगिनत अत्याधुनिक हाइटेक दूरबीनों से भी देखने पर। हे मेरे बसुन्धरा के आर्यभट्ट, वराहमिहिर, चरक, सुश्रुत और नागार्जुन, कहीं फिर तो नहीं चले गए, किसी अनंत अनजान कन्दरा और गुफा में अनंत काल के लिए।  या हे मेरे प्रि…
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*लौटकर ना आयेंगे हम*
कितने चेहरे लेकर घुमते हैं लोग !! पहचानना मुश्किल हैं !! सुना था गिरगिट रंग बदलने मे महीर होता हैं !! यहा तो इंसान उससे आगे निकल गया !! दिखवे का मुखौटा लगाकर बात करते हैं !! उन्हें लगता हैं कि हम ना समझ हैं !! जिस दिन चले गये !! फिर ना लौट के आयेंगे हम !! हम भी ये सोच कर सुनते हैं !! कि आखिर कीस हद…
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*मैंने ईश्वर को पा लिया....…*
विश्व का वैभव विपुल गृह में सजा, हो सुरक्षित, आणविक हथियार से। ग्रह, नखत, गिरि, उदधि, यह सुंदर धरा, कर समर्पण, झुक रहे हैं प्यार से। वारि, विद्युत, वायु, नभ पाताल सारे, सर्वदा, सेवक बने, अनुकूल हैं। आदेश पर है, ताप, चढता-उतरता, सामने पड़ते न, कोई शूल हैं। कर नियंत्रण, पूर्ण इस ब्रह्माण्ड, पर, फिर भ…
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धोता परमेश्वर,‌ दीन-चरण...…
जिनके  प्रताप  से  हो  आहत, सारे नक्षत्र, ग्रह व्यथित-विकल। ये,  चांद - सूर्य - सागर -पृथ्वी, सेवारत,   घुटने  टेक, निवल। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 यह  महिषासुर, भीषण-  प्रचंड, ये चंड-मुंड   -  निशुम्भ -  शुम्भ। ये  रावण,  कंस, हिरण्यकशिपु, रौंदते सिंधु - मथ, यथा   कुम्भ। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷?…
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किसी के चेहरे पर, दिव्य यदि, मुस्कान ला दोगे...…
किसी के चेहरे पर दिव्य,    यदि मुस्कान, ला दोगे, मिटेगी पीर, जीवन की,   दुखद वाधा, भुला दोगे। हृदय की घाटियां तेरी, भरीं, रंगीन ‘वृन्दावन’, रास-रस-लीन-‘गोपी’-संग, मृदुल, ‘मोहन‌’ बसा लोगे। खिले जो पुष्प डाली पर, इन्हें खिल, खिलखिलाने दो, मधुर गुंजार-रत, भ्रमरों में, मधु संसार, पा लोगे। यहां रोते हुए…
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बन वही भगवान जाता है...…
खलों के क्रूर उत्पीड़न से, व्याकुल, व्यथित जीवन को, चला जो त्राण देंने, बन वही, भगवान जाता है। शिखर भूधर की ऊंची झुक, चरण में नत, विनत होकर, सतत्  हिमवान से वह, उच्चतम, सम्मान पाता है। पथ-स्थित, सागरों की लहर, का तूफान, थम जाता, लहर की मंद शीतलता से, मुक्ति थकान, पाता है।   पड़ी पथ में, अगर अवरोध, …
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‘ईद’ मुबारक विश्व का कल्याण हो..…
‘ईद’ आई  लगाने,  गले  से  तुझे, बस गले ही न लग, दिल मिला लीजिए, मेट मन की  मलिनता, कलुषता मिटा, द्वेष, पर्वत  सा  फैला, गला दीजिए। 🌺🌺🌺🌺🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌸🌸🌸🌸🌸 दिल में नफरत-घुलन, का मिटे सिलसिला, स्नेह-अमृत  की  घूंटें, पिला  दीजिए। देखो  मुर्झा  न  जाये, सु-मन-वाटिका, स्नेह-जल, सींच कर के,  खिला…
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*यह बिना भेद करती भक्षण...…*
ये हैं गरीब ‘अनजान-उदधि’, इनकी ‘अनजान, गुफाओं’ में। हैं छिपे हुए, अनमोल रत्न, भर देंगे प्रभा, दिशाओं में। ये हैं ‘कानन अनजान’, भरे, हंसते, खिलखिला ‘प्रसूनों’ से। इनकी कर सदा, उपेक्षा हम, वंचित हो गए, नमूनों से। हो सकी नहीं ‘प्रतिभा’, विकसित, खा मार, गरीबी-झोकों से। शोषण अनवरत हुआ, इनका,  ‘संभ्रांत’…
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