‘ईद’ आई लगाने, गले से तुझे,
बस गले ही न लग, दिल मिला लीजिए,
मेट मन की मलिनता, कलुषता मिटा,
द्वेष, पर्वत सा फैला, गला दीजिए।
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दिल में नफरत-घुलन, का मिटे सिलसिला,
स्नेह-अमृत की घूंटें, पिला दीजिए।
देखो मुर्झा न जाये, सु-मन-वाटिका,
स्नेह-जल, सींच कर के, खिला दीजिए।
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मेरे मौला ! मनुजता, मृतक- प्राय है,
भाव-संवेदना भर, जिला दीजिए।
विश्व-वंधुत्व की नींव करके सुदृढ,
ईद-शुभ-गान गा, गुनगुना लीजिए।
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विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…
महेन्द्र राय
पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़।
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