19 दिसंबर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसा दिन है, जो त्याग, साहस और राष्ट्रभक्ति की अमर मिसाल बनकर सदैव स्मरण किया जाता है। इसी दिन वर्ष 1927 में देश की आज़ादी के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूमने वाले महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि को अमर ऋण से बाँध दिया। उनका बलिदान केवल तीन व्यक्तियों की शहादत नहीं था, बल्कि वह उस ज्वाला का प्रज्वलन था जिसने लाखों युवाओं के हृदय में स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित कर दी।
राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के प्रखर विचारक, कवि और संगठनकर्ता थे। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे और ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति को आवश्यक मानते थे। “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” जैसे ओजस्वी विचारों से प्रेरित बिस्मिल का जीवन देशभक्ति, त्याग और आत्मबलिदान का प्रतीक था। काकोरी कांड के माध्यम से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय युवा अब गुलामी की जंजीरों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
अशफाक उल्ला खां का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द का सबसे सुंदर उदाहरण है। वे बिस्मिल के अत्यंत निकट सहयोगी और मित्र थे। धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्र को सर्वोपरि मानने वाले अशफाक उल्ला खां ने यह सिद्ध किया कि भारत की आज़ादी की लड़ाई किसी एक धर्म, जाति या वर्ग की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की थी। फाँसी से पूर्व भी उन्होंने यह कहा कि उन्हें गर्व है कि वे एक स्वतंत्र भारत के स्वप्न के लिए बलिदान दे रहे हैं।
ठाकुर रोशन सिंह भारतीय क्रांति आंदोलन के ऐसे साहसी योद्धा थे, जिनका नाम दृढ़ निश्चय और निर्भीकता का पर्याय है। वे भी काकोरी कांड के प्रमुख अभियुक्तों में शामिल थे और अंग्रेजी शासन के सामने कभी झुके नहीं। कठोर यातनाओं और दबाव के बावजूद उनका संकल्प अडिग रहा। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि सच्चा देशभक्त मृत्यु से नहीं डरता, बल्कि गुलामी को सबसे बड़ा अभिशाप मानता है।
19 दिसंबर 1927 को जब इन तीनों वीरों को अलग-अलग जेलों में फाँसी दी गई, तब अंग्रेजी हुकूमत ने भले ही यह समझा हो कि उसने क्रांतिकारी आंदोलन को कुचल दिया है, लेकिन वास्तव में उसी दिन स्वतंत्रता की लौ और अधिक प्रज्वलित हो गई। उनकी शहादत ने भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक क्रांतिकारियों को नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की।
आज उनका बलिदान दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि स्वतंत्रता केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि अनगिनत बलिदानों की परिणति है। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह का जीवन हमें सिखाता है कि देश के लिए एकता, साहस और त्याग ही सबसे बड़ी शक्ति है। उनके विचार और आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस दौर में थे।
बलिदान दिवस पर इन अमर शहीदों को शत-शत नमन करते हुए यह संकल्प लेना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके सपनों के भारत — एक स्वतंत्र, समरस, न्यायपूर्ण और आत्मनिर्भर राष्ट्र — के निर्माण में अपना पूर्ण योगदान दें। उनकी शहादत सदैव हमें राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की प्रेरणा देती रहेगी।
परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️


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