किसी के चेहरे पर, दिव्य यदि, मुस्कान ला दोगे...…



किसी के चेहरे पर दिव्य,   

यदि मुस्कान, ला दोगे,

मिटेगी पीर, जीवन की,  

दुखद वाधा, भुला दोगे।


हृदय की घाटियां तेरी,

भरीं, रंगीन ‘वृन्दावन’,

रास-रस-लीन-‘गोपी’-संग,

मृदुल, ‘मोहन‌’ बसा लोगे।


खिले जो पुष्प डाली पर,

इन्हें खिल, खिलखिलाने दो,

मधुर गुंजार-रत, भ्रमरों में,

मधु संसार, पा लोगे।


यहां रोते हुए आए,

रुलाते आज भी, सबको,

हंसा कर विश्व को, तुम,

स्वयं में, प्रतिकार, पा लोगे।


जो अर्जन, है किया, जग में,

विसर्जन, कर  उसे, जग में,

भरी संवेदना, प्रभु-मिलन,

का, अधिकार, पा लोगे।


दग्ध-उर की, व्यथा-हर,

चेहरों में, भर कर, मुस्कानें,

बने तुम ‘दिन-बंधु’ का,

विमल ‘किरदार’, पा लोगे।


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन....…

महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 



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