बन वही भगवान जाता है...…



खलों के क्रूर उत्पीड़न से,

व्याकुल, व्यथित जीवन को,

चला जो त्राण देंने,

बन वही, भगवान जाता है।


शिखर भूधर की ऊंची झुक,

चरण में नत, विनत होकर,

सतत्  हिमवान से वह,

उच्चतम, सम्मान पाता है।


पथ-स्थित, सागरों की लहर,

का तूफान, थम जाता,

लहर की मंद शीतलता से,

मुक्ति थकान, पाता है।

 

पड़ी पथ में, अगर अवरोध,

की है की लंकिनी कोइ,

हुई आहत, उसी से,

प्यार-पूरित, मान पाता है।


बचाने नारि की गरिमा,

बचाने प्राण मानव का,

मसलता गर्व की लंका,

जगत गुण-गान गाता है।


भरा, उपकार-भावों से,

मनुज हो, या कि, वानर हो,

वही, हनुमान बन कर,

सतत् कीर्ति, महान पाता है।


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…


महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 

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