यूनीवर्सल बेसिक इन्कम आत्म निर्भर मानवता के लिए आवश्यक : डॉ. एच एन सिंह पटेल


आज का "यूनीवर्सल बेसिक इन्कम" का सिद्धान्त बुद्ध के बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, संत रविदास (चाहूँ ऐसा राज मैं, मिले सबन को अन्न, छोट बड़ो सब सम बसे, रैदास रहे प्रसन्न), थॉमस पेन, मार्टिन लूथर किंग (गारंटीड इन्कम), रिचर्ड निक्सन (बेसिक इन्कम बिल), रगर ब्रैगमैन, डाॅ अंबेडकर के पे बैक टू सोसायटी सिद्धान्त से उपजा हुआ और विकसित है।

यूनीवर्सल बेसिक इन्कम का अर्थ है सबको उनके एकाउंट में एकमुश्त मासिक  आय दी जाये जो उनके जीवन स्तर को गरिमा के साथ बनाये रख सके, उनकी बेसिक जरूरतें पूरी हो सकें। यह कोई असंभव कार्य नही रह गया है।इसके लागू होते ही देश में अपराध प्रभावी रूप से कम होंगे, भिखारीपन खत्म होगा,मानवाधिकार हनन कम होगा, लिंगभेद आधारित सामाजिक शोषण कम होगा। जातिविहीन समाज व्यवस्था खड़ी होगी।

ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार एक प्रतिशत सबसे धनी भारतीयों पर अगर .5% कर बढ़ा दिया जाये तो 117 मिलियन जाॅब पैदा किये जा सकते हैं। अगर इस सर्वे को आधार मान लिया जाये तो कर निर्धारण और कर छूट को रोजगार सृजन से जोड़कर हम यूनीवर्सल बेसिक इन्कम से देश का नैराश्य खत्म कर सकते हैं तब साम्प्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय तनाव के लिए कोई स्थान नही बचेगा। इस सिद्धांत के क्रियान्वयन में बहुत संदेह प्रतीत होता है परंतु यह सत्य है कि यू बी आई महत्वाकांक्षी लोगों को नाकारा नही बना सकती है परंतु निराश और हताश बेरोजगारों को स्वाभिमानी और महत्वाकांक्षी बना सकती है। लोगों का स्वाभिमान जागेगा और यूबीआई को अधिकार के रूप में स्वीकार करेंगे, निजी या आपराधिक मुफ्तखोरी नही करेंगे न ही उसके शिकार होंगे।

डॉ. एच एन सिंह पटेल सर्जन 

विधायक सगड़ी आजमगढ़।



Comments