जिनके प्रताप से हो आहत,
सारे नक्षत्र, ग्रह व्यथित-विकल।
ये, चांद - सूर्य - सागर -पृथ्वी,
सेवारत, घुटने टेक, निवल।
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यह महिषासुर, भीषण- प्रचंड,
ये चंड-मुंड - निशुम्भ - शुम्भ।
ये रावण, कंस, हिरण्यकशिपु,
रौंदते सिंधु - मथ, यथा कुम्भ।
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हो जाता ज्वाला -मुखी, शांत,
होती भीषण ज्वाला, शीतल।
तज तीक्ष्ण तेज, निज ज्वाला तज,
कंपित हो पत्र, यथा पीपल ।
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बर्बर, प्रचंड, घातक-भीषण,
ये, उग्र, विनाशक, दुराजेय।
हो गये नष्ट, पल- मात्र ,छिन्न,
अस्तित्व गवां, हत हुए, श्रेय।
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ये , श्रृष्टि-विनाशक, उग्र- तत्व,
उद्दंड परम, भीषण, अजेय ।
जिस दिव्य शक्ति ने, लील लिया,
इनकी अजेयता, हुई जेय।
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है वही बैठ, मां शबरी की, गोदी
हर्षित, खा रहा, बेर।
धो रहा, सुदामा- दीन-चरण,
पैरों के कंटक, रहा, हेर।
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जिनसे, कंपित ब्रह्मांड, सकल,
उनको, पल मसल, मिटाता है।
वह ही परमेश्वर, प्रेम-विवश,
पद धो, जूठे फल खाता है।
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विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…
महेन्द्र राय
पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़।
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