धोता परमेश्वर,‌ दीन-चरण...…

 


जिनके  प्रताप  से  हो  आहत,

सारे नक्षत्र, ग्रह व्यथित-विकल।

ये,  चांद - सूर्य - सागर -पृथ्वी,

सेवारत,   घुटने  टेक, निवल।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


यह  महिषासुर, भीषण-  प्रचंड,

ये चंड-मुंड   -  निशुम्भ -  शुम्भ।

ये  रावण,  कंस, हिरण्यकशिपु,

रौंदते सिंधु - मथ, यथा   कुम्भ।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


हो   जाता   ज्वाला  -मुखी, शांत,

होती    भीषण    ज्वाला, शीतल।

तज तीक्ष्ण तेज, निज ज्वाला तज,

कंपित   हो   पत्र, यथा    पीपल ।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


बर्बर,  प्रचंड,   घातक-भीषण,

ये,  उग्र,  विनाशक,  दुराजेय।

हो   गये   नष्ट,  पल- मात्र ,छिन्न,

अस्तित्व   गवां, हत   हुए, श्रेय।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


ये ,  श्रृष्टि-विनाशक,  उग्र- तत्व,

उद्दंड   परम, भीषण,  अजेय ।

जिस दिव्य शक्ति ने, लील लिया,

इनकी   अजेयता,    हुई    जेय।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


है वही बैठ, मां शबरी  की, गोदी

 हर्षित,  खा    रहा,    बेर।

धो    रहा, सुदामा- दीन-चरण,

पैरों    के    कंटक,   रहा,  हेर।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


जिनसे,  कंपित  ब्रह्मांड,  सकल,

उनको,  पल  मसल, मिटाता है।

वह   ही   परमेश्वर,   प्रेम-विवश,

पद  धो, जूठे  फल  खाता  है।


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…

महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 



Comments