विलक्षण प्रतिभा के धनी थे एशिया के प्रथम नोबल पुरस्कार विजेता रबिन्द्र नाथ टैगोर


कवि, दार्शनिक, शिक्षाविद, उत्कट देशभक्त, सर्वश्रेष्ठ मानवतावादी, प्रकृतिवादी, उच्च कोटि के पर्यावरणविद तथा विश्व बंधुत्व और विश्व नागरिकता के प्रखर समर्थक रबिन्द्र नाथ टैगोर भारत की साहित्यिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक आत्मा के अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ता थे। वह भारतीय मेधाशक्ति और ज्ञान-प्रज्ञा की महान परंपरा के रूप मे महाकवि कालिदास, माघ, जयदेव, सूरदास, सैयद इब्राहीम रसखान, और तुलसीदास की परम्परा के अपने समकालीन ध्वजवाहक थे। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की स्वरलहरियों जैसी उनकी वाणी और लेखनी में अद्भुत सम्मोहन शक्ति थी। इकलौते रबिन्द्र नाथ टैगोर भारतीय बसुन्धरा के विरले लेखक और कवि हैं जिनके लेख सम्पूर्ण बंगाली जनमानस के हृदय में समाहित है और उनके गीत हर बंगाली मन मस्तिष्क में हमेशा तरोताजा रहते हैं। अपने दौर की सारी संकीर्णताओं और दकियानूसी ख्यालों से आगे बढ़ कर रबिन्द्र नाथ टैगोर ने वैश्विक और  मानवतावादी अंतर्दृष्टि अपनाते हुए अपनी साहित्यिक सर्जनाओं और रचनाओं को अभिव्यक्त किया। इसलिए पूर्वी दुनिया में पैदा हुए रविन्द्र नाथ टैगोर का पश्चिमी दुनिया ने भारत सहित सम्पूर्ण एशिया के सांस्कृतिक और साहित्यिक अग्रदूत के रूप में अभिनंदन और स्वागत किया। प्रकृतिवादी, पर्यावरणवादी, मानवतावादी और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के रहस्यवादी होने के कारण रबिन्द्र नाथ टैगोर की रचनाओं ने न केवल भारत बल्कि विश्व साहित्य को गगनचुंबी बुलंदी प्रदान की और विश्व साहित्य को अत्यंत समृद्धशाली बनाया। उनकी ब्रहमांड को परखने की अंतः प्रज्ञात्मक चेतना और क्षमता, शैली की गरिमा युक्त सरलता, जाज्वल्यमान कल्पना और उत्कट दूरदर्शिता उन्हें वैश्विक क्षितिज पर एक अद्वितीय साहित्यिक स्थान प्रदान करती है। जिस तरह  स्वामी विवेकानंद वैश्विक पटल पर भारतीय दर्शन और आध्यात्म के ओजस्वी संदेशवाहक थे उसी तरह टैगोर भारत की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना के सर्वश्रेष्ठ संवाहक थे।

रबिन्द्र नाथ टैगोर भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता के प्रखर साहित्यिक सर्जक थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान उभरते आधुनिक भारत के आदर्शों, आकांक्षाओं, मूल्यों, मान्यताओं और लालसाओं को उन्होंने  स्पष्टीकरण किया और अपनी कविताओं के माध्यम से साक्षात्कार कराया। गुरु वर रविन्द्र नाथ टैगोर को भारत के गौरवशाली अतीत पर गर्व और गौरव की अनुभूति होती थी। वह हमेशा कहा करते थे कि-भारत के गगनमंडल में ही उषा की प्रथम रश्मि प्रस्फुटित हूई थी। उनके अनुसार आज विश्व में प्रचलित अधिकांश मानवता वादी मूल्यों, मान्यताओं, सिद्धांतो और श्रेष्ठतम आदर्शों का निरूपण भारतीय बसुन्धरा के वनों, गुफाओं और कन्दराओं में साधना रत युगद्रष्ट्रा ऋषियों द्वारा किया गया। महान मानवता वादी रविन्द्र नाथ टैगोर शासकीय, साम्प्रदायिक, धार्मिक और विशुद्ध भौतिकवादी  साम्राज्यवादी क्रूरता के प्रबल विरोधी थे। इसलिए जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की तर्ज पर भारत में जलियावाला बाग में जनरल डायर द्वारा की गई क्रूरता का पूरी क्षमता से भर्त्सना किया था। इसे उन्होने राक्षसी अत्याचार कहा था और तत्कालीन भारत सरकार द्वारा प्रदत्त "नाइट" की उपाधि वापस कर दिया था। उनके अनुसार विविध प्रकार की क्रूरताएं सम्पूर्ण वैश्विक इतिहास और मानवता के मस्तक पर कलंक है। 



मनोज कुमार सिंह 

प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

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