तिरस्कार को सकारात्मक अर्थ में ग्रहण करने से होता हैं व्यक्तित्व का परिष्कार : मनोज कुमार सिंह
प्रायः तिरस्कार को बोली-भाषा, आचरण-व्यवहार, शिष्टाचार और साहित्यिक समझ-बूझ और समझदारी में नकारात्मक दृष्टि से ग्रहण किया जाता है। भावाभिव्यक्ति, सामाजिक संबंधों और आम जन-जीवन में तिरस्कार को अपमानजनक आचरण का परिचायक समझा जाता हैं। परन्तु कदाचित तिरस्कार के कारण मर्माहत हृदयों ने तिरस्कार के फलस्वर…