‘प्रार्थना’ परमपिता परमात्मा से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है!


शरीर रूपी यंत्र के माध्यम से हमें ईश्वरीय आज्ञाओं का पालन करना चाहिए:- 

परमात्मा द्वारा दिये गये शरीर रूपी यंत्र के माध्यम से हमें ईश्वरीय आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। परमात्मा कहते हैं कि तुम्हें जो आँखें दी हैं, वे सुन्दर व ईश्वरीय सपने देखने के लिए दी हैं। इसलिए व्यर्थ की चीजें हम अपनी इन आँखों से न देखें। किसी भी चीज को देखते हुए हमारा भाव ईश्वरीय होना चाहिए। ईश्वर कहता है कि तेरी आँखें मेरा भरोसा है। तू इसको व्यर्थ की इच्छाओं की धूल से गंदा न कर। तेरे कान मेरी पवित्र वाणी को सुनने के लिए हैं। तेरा हृदय मेरे गुणों का खजाना है। तेरे स्वार्थ रुपी हाथ कहीं मेरे खजाने को लूट न लें। तुझे हाथ इसलिए दिये हैं कि इन हाथों में ईश्वर द्वारा दिव्य लोक से भेजी गई पवित्र पुस्तकें गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब व किताबे अकदस आदि हों। तू अपने हाथों से वही कार्य कर जो ईश्वरीय आज्ञाओं तथा इच्छाओं के अनुकूल हों। इसलिए हमारी अपनी कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए बल्कि हमें प्रभु इच्छा को ही अपनी इच्छा बनाते हुए अपने शरीर रूपी यंत्र के माध्यम से प्रभु की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। जो लोग प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेते हैं फिर उन्हें धरती तथा आकाश की कोई शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती। 

‘प्रार्थना’ परमपिता परमात्मा से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है:-  

इस सृष्टि को सुन्दर बनाने के लिए हमें इस शरीर रुपी यंत्र का सदुपयोग करना चाहिए। इसके लिए हमारा मन तथा हृदय ईश्वरीय इच्छाओं से लबालब होना चाहिए। प्रार्थना परमपिता परमात्मा से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है। प्रभु वार्तालाप के माध्यम से हमारी आत्मा में प्रकाश आता है। ईश्वरीय प्रकाश से आत्मा के प्रकाशित होने से मनुष्य का सारा जीवन प्रकाशित हो जाता है। प्रार्थना का संबंध जीवन से अवश्य होना चाहिए। हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु आप मेरी सहायता करें। मेरी इच्छा तेरी इच्छा के अनुकूल हो। हमें प्रार्थना के माध्यम से अपनी इच्छाओं को ईश्वर की इच्छाओं से जोड़ना चाहिए। हमें परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे परमात्मा! हम सदैव आपकी बनायी इस सृष्टि को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहेंगे। ईश्वर की सृष्टि को सुन्दर बनाने के लिए अपने ज्ञान-विज्ञान तथा अनुभव का उपयोग करेंगे। इस ईश्वरीय कार्य के लिए ईश्वर की तरफ से देवदूतों की एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी और इसी प्रकार तमाम आध्यात्मिक विचारों से परिपूर्ण सेनायें हमारी सहायता के लिये आ जायेगीं। 

ईश्वर की सहायता से ही सभी समस्याओं पर विजय संभव:-

परमात्मा जिस समय हमारी सहायता करता है उस समय हमारे मस्तिष्क में जो विचार आते हैं वे विचार हमारे अच्छे के लिए ही होते हैं। वे विचार हमारी भलाई के लिए होते हैं। हम उस समय कितनी भी बड़ी कठिनाई में क्यों न हो परमात्मा हमें सही मार्गदर्शन देकर उन समस्याओं पर हमारी विजय दिला देते हैं। उस समय हमारे मस्तिष्क में ऐसे-ऐसे विचार आने लगते हैं, उन समस्याओं के समाधान के लिए ऐसे-ऐसे सुझाव आने लगते हैं, जिनके बारे में हमने पहले कभी सोचा तक नहीं होता है। ईश्वर जब हमारी सहायता के लिए आता है तो हमारे सोचने और समझने की शक्ति में गजब का इजाफा हो जाता है। हमारे अंदर से सही काम को करने की शक्ति पैदा हो जाती है। हमारे विचारों में परमात्मा का ज्ञान प्रवाहित होता चला जाता है। यह दिव्य ज्ञान परमात्मा हमें दिव्य लोक से विचारों के माध्यम से भेजते रहते हैं। किसी भी कार्य को करने के पूर्व उसके अन्तिम परिणाम पर सोच लेना समझदारी है। 

ईश्वर की भक्ति के बाद हम मानसिक रूप से बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं:-

ईश्वर, अल्ला, खुदा, गॉड या परमात्मा, जिस भी रूप में हम उसे मानते हैं, उसकी शरण में चले जाने के बाद हमारी आत्मा में इतना बल आ जाता है कि हमारा मन स्थिर हो जाता है और हम बहुत तीव्रता के साथ उन समस्याओं के समाधान के लिए सही दिशा में सोचते चले जाते हैं। उस समय हमारे द्वारा जो भी निर्णय लिया जाता है वह एकदम सही और हमारे हित के लिए होता है। ईश्वर की भक्ति के बाद हम मानसिक रूप से बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। हमारे द्वारा की गई प्रार्थना के बाद परमपिता परमात्मा हमारे मस्तिष्क में विचारों के माध्यम से जो ज्ञान देता है उन्हीं ज्ञान पर चलकर ही हम अपने जीवन में बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त करते जायेंगे। इसलिए हमें मन ही मन में परमात्मा को याद करना चाहिए। उनकी प्रार्थना, उनका मनन तथा उनका चिंतन करना चाहिए और अपने लिए मार्गदर्शन मांगना चाहिए। प्रार्थना के माध्यम से हमें परमात्मा से जुड़ना चाहिए। फिर परमात्मा हमें अपना जो मार्गदर्शन दें उस पर चलते हुए हमें सारी मानवता की भलाई के लिए काम करना चाहिए। ऐसा करने से परमात्मा हमसे खुश होगे और हम उसकी सहायता से अपने जीवन में नित्य नई-नई बुलंदियों को छूते चले जायेंगे।  हरि मेरे घर को यह वर दो, मात-पिता की सेवा हो, भाई-बहिन में निश्चल प्रेम हो, अतिथि मि़त्र का सदा सत्कार हो। घर ही मेरे लिए तीर्थ हो। पारिवारिक एकता ही विश्व एकता तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की आधारशिला है।                 

-जय जगत -

डॉ. जगदीश गाँधी 

संस्थापक-प्रबन्धक

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ। 





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