हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर विशेष लेख :-
हिंदी साहित्य की विराट परंपरा में हरिवंश राय बच्चन एक ऐसा नाम हैं, जिनकी कविताएँ केवल पंक्तियाँ नहीं, बल्कि जीवन का गायन हैं - जीवन का संघर्ष, उसका सौंदर्य, उसकी पीड़ा और उसका अनंत उल्लास। बच्चन जी ने हिंदी कविता को न केवल नया आयाम दिया, बल्कि उसे आम जन की भाषा, बोली, संस्कृति और भावनाओं से जोड़कर एक नई दिशा दी। उनकी जयंती के अवसर पर उन्हें स्मरण करना, साहित्य की उस जड़ों को छूना है, जो हमारी संवेदना को सींचती हैं और हमें अपनी मिट्टी से जोड़ती हैं।
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद जिले के प्रतापगढ़ से लगे छोटे से गाँव 'बाबूपट्टी' में हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि साहित्य, संगीत और काव्य की ओर रही। उनकी पहली ही कृति “मधुशाला” ने हिंदी साहित्य जगत में धूम मचा दी और उन्हें रातों-रात लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया। यह कविता सिर्फ ‘शराब’ या ‘मदिरालय’ का रूपक नहीं है, बल्कि जीवन की जटिलताओं, संघर्षों और मानव मन की भावनाओं का आध्यात्मिक दर्शन है। बच्चन की मधुशाला पीढ़ियों से पढ़ी, गाई और समझी जाती रही है—और हर बार एक नया अर्थ, नया दर्शन देती है।
बच्चन जी ने अपने काव्य में जीवन के हर रंग को स्थान दिया-प्रेम, विरह, समाज, प्रश्न, आस्था, संघर्ष, उम्मीद और बदलाव। उनका लेखन भावनाओं के उस महासागर जैसा है, जिसे पढ़कर हर पाठक अपने भीतर का ‘स्वयं’ खोज लेता है। मधुबाला, मधुकलश, निशा-निमंत्रण, एकांगी जैसे संग्रह उनके काव्य-साधना के अद्भुत पड़ाव हैं। उन्होंने केवल कविता ही नहीं, बल्कि आत्मकथाओं की चार कड़ियों में अपने जीवन की यात्रा को जिस सहजता और ईमानदारी से लिखा, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय है। ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बस इतना ही’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’- ये आत्मकथाएँ हिंदी साहित्य में क्लासिक मानी जाती हैं।
हरिवंश राय बच्चन केवल कवि ही नहीं, बल्कि हिंदी भाषा के सजग प्रहरी भी थे। उन्होंने लोकभाषा और साहित्यिक भाषा के बीच एक मजबूत पुल बनाया। उनके काव्य का संगीतात्मक प्रवाह और गेयता उन्हें सर्वजनप्रिय बनाते हैं। यही कारण है कि बच्चन की कविताएँ न सिर्फ साहित्य के विद्यार्थियों द्वारा पढ़ी जाती हैं, बल्कि आम लोगों के दिलों में भी बसती हैं।
देश ने उनकी साहित्यिक प्रतिभा और सेवाओं को भी उचित सम्मान दिया। उन्हें पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक सम्मानों से नवाजा गया। वे राज्यसभा सदस्य भी रहे और संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेज़ी पर उनकी गहरी पकड़ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँचा दिया।
हरिवंश राय बच्चन की जयंती हमें यह याद दिलाती है कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं होता, बल्कि समाज की चेतना है-मानव मन का आईना है। बच्चन जी ने अपने लेखन से हमें जीने की कला सिखाई, संघर्षों में मुस्कुराने की प्रेरणा दी और यह बताया कि जीवन अपने आप में एक मधुशाला है-जहाँ हर दुःख के पीछे जीवन का कोई गहरा अर्थ छिपा होता है।
हरिवंश राय बच्चन केवल हिंदी के नहीं, बल्कि भारतीय साहित्य के उज्ज्वलतम सितारों में से एक हैं। उनका काव्य, उनकी संवेदना और उनकी साहित्यिक विरासत सदियों तक मन को आलोकित करती रहेगी। उनकी जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।



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