आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस : नेताजी के साहस और बलिदान को नमन


(एक भारत, एक लक्ष्य – स्वतंत्रता)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में आजाद हिंद फौज का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। यह फौज केवल एक सैन्य संगठन नहीं थी, बल्कि यह भारत की आज़ादी की तीव्र ललक, त्याग और देशभक्ति की ज्वाला का प्रतीक थी। हर वर्ष 21 अक्टूबर को “आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस” मनाया जाता है, ताकि उस अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान को स्मरण किया जा सके जिसने भारत को स्वतंत्रता की दिशा में नई ऊर्जा प्रदान की।

🔸 स्थापना की पृष्ठभूमि

द्वितीय विश्व युद्ध के समय, 1942 में जापान में भारतीय युद्धबंदियों और प्रवासी भारतीयों की सहायता से कैप्टन मोहन सिंह ने आजाद हिंद फौज की नींव रखी। लेकिन इसे नई दिशा और नई पहचान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में मिली। 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने सिंगापुर में आरज़ी हुकूमत-ए-आजाद हिंद की घोषणा की और आजाद हिंद फौज को भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु समर्पित किया।

🔸 नेताजी का नेतृत्व और लक्ष्य

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नारा – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” – आज भी हर भारतीय के हृदय में जोश और उत्साह भर देता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल कागज़ पर नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान से प्राप्त होती है। उन्होंने आजाद हिंद फौज के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी और यह दिखाया कि भारत अब किसी भी कीमत पर गुलामी बर्दाश्त नहीं करेगा।

🔸 “जय हिंद” और “दिल्ली चलो” का आह्वान

आजाद हिंद फौज ने अपना राष्ट्रीय नारा जय हिंद दिया, जो आज भी भारतीय सेना और नागरिकों का अभिवादन बन चुका है। फौज का उद्देश्य स्पष्ट था — “दिल्ली चलो”, यानी मातृभूमि की पूर्ण मुक्ति। इस आंदोलन ने देश के हर कोने में जोश भर दिया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को नई गति मिली।

🔸 योगदान और प्रभाव

यद्यपि आजाद हिंद फौज सैन्य दृष्टि से निर्णायक विजय प्राप्त नहीं कर सकी, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया। भारतीय सैनिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना जागी और अंग्रेजी हुकूमत को यह अहसास हुआ कि अब भारत पर नियंत्रण बनाए रखना असंभव है। फौज के सैनिकों के त्याग और देशभक्ति ने आने वाली पीढ़ियों के लिए अमर प्रेरणा का स्रोत तैयार किया।

🔸 निष्कर्ष

आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बल्कि संघर्ष, त्याग और बलिदान का परिणाम है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी सेना ने जो बीज बोया था, वही भारत की स्वतंत्रता के वृक्ष के रूप में फला-फूला।

इस दिवस पर हमें प्रण लेना चाहिए कि हम नेताजी के सपनों का भारत बनाएं — जहाँ एकता, देशभक्ति, समर्पण और आत्मनिर्भरता हमारे राष्ट्र का मार्गदर्शक सिद्धांत हो।

जय हिंद! वंदे मातरम्! 🇮🇳

परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️ 




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