भगवान चित्रगुप्त जी : न्याय, लेखा और धर्म के प्रतीक

हर वर्ष यम द्वितीया (भाईदूज) के दिन भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा-अर्चना पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से की जाती है। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और कर्म के प्रति जागरूकता का प्रतीक दिवस भी है।

भगवान चित्रगुप्त जी को "लेखनी के देवता" कहा गया है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की व्यवस्था और जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखने के लिए चित्रगुप्त जी की रचना अपने मन से की थी। इसलिए उन्हें कायस्थ समाज का आद्य पुरुष माना जाता है। उनका जन्म ब्रह्मा जी के काया से उत्पन्न होने के कारण “कायस्थ” शब्द की उत्पत्ति हुई।

चित्रगुप्त जी यमराज के सहायक के रूप में मानव के कर्मों का हिसाब रखते हैं और मृत्यु के पश्चात प्रत्येक आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार फल दिलाने में न्याय करते हैं। इसीलिए चित्रगुप्त जी को न्याय और लेखा के देवता के रूप में पूजा जाता है।

इस दिन कायस्थ समाज के लोग पूरे विधि-विधान से भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं। पूजा में कलम, दवात, किताबें, लेखनी और लेखा पुस्तकों की विशेष पूजा की जाती है। इसे "लेखन पूजा" या "कायस्थ पूजन" भी कहा जाता है। पूजा के पश्चात समाज में आपसी मेल-मिलाप, दान और सत्कर्म का विशेष महत्व होता है।

चित्रगुप्त पूजन दिवस हमें यह संदेश देता है कि मनुष्य अपने हर कर्म के प्रति सजग रहे, क्योंकि प्रत्येक कर्म का लेखा स्वंय भगवान चित्रगुप्त जी के पास सुरक्षित रहता है। यह दिन हमें सत्य, नीति, ईमानदारी और धर्मनिष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

आज के डिजिटल युग में भी जब लेखा-जोखा कंप्यूटरों में दर्ज होता है, तब भी भगवान चित्रगुप्त जी की भूमिका हमें याद दिलाती है कि मानव जीवन का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर उसके कर्म हैं — और उसके न्यायाधीश स्वयं चित्रगुप्त जी।


पंडित विजेंद्र कुमार शर्मा ✍️ 

जीराबस्ती, बलिया (उ.प्र.)




Post a Comment

0 Comments