कुछ बीत गया, कुछ आने वाला है कल।
फिसल रही है रेत सी यूँ जिंदगी,
बदरंग हो चली है सारी जमीं।
छूट रहा है वो समां जाने किधर,
समय की धारा बह रही है हर पल।
पल दो पल चल रही यूँ जिंदगी,
तीव्र हो रही है समय की गति।
छूट रहा है वो समां जाने किधर,
समय की धारा बह रही है हर पल।
मोल भाव नही रहा अब जिंदगी,
काल चक्र भी दे रहा है चुनौती।
छूट रहा है वो समां जाने किधर
समय की धारा बह रही है हर पल।
टकरा रहा है यूँ जिंदगी की सांस से,
कब दबोच लेगा ये समय दिन रात में।
छूट रहा है वो समां जाने किधर,
समय की धारा बह रही है हर पल।
स्वरचित✍️
मानसी मित्तल
शिकारपुर, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
मानसी मित्तल
शिकारपुर, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
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