सड़क पर संघर्ष की राजनीति के पर्याय थे जनपद के जननायक सुधाकर सिंह


सहकार, समन्वय, साहचर्य, सामंजस्य, सहिष्णुता, सद्भावना, समरसता एवं आपसदारी की राजनीतिक संस्कृति में पूरी तरह रंगे जनपद के जननायक स्वर्गीय सुधारक सिंह सड़क पर संघर्ष की राजनीति के पर्याय थे। छात्र राजनीति से ही सड़क पर अपने निर्भिक निडर साहसी जीवंत एवं जीवट संघर्ष से सियायत को हमेशा गर्म रखते थे। शायद डॉ राम मनोहर लोहिया के जन राजनीति के इस ब्रह्मवाक्य को सुधाकर सिंह ने पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था कि जब सड़क खामोश हो जाती हैं तो संसद आवारा एवं बदचलन हो जाती हैं। शासन एवं सत्ता से सीधे टकराना बखूबी आता था सुधाकर सिंह को। अपनी घर गृहस्थी जिंदगी अपने बाल-बच्चों और परिवार की परवाह किए बिना शासन सत्ता सरकार या किसी तरह के ताकतवर से टकराना आसान नहीं होता है। परन्तु सुधारक सिंह अपने बाल-बच्चों और परिवार की चिंता किए बिना शासन सत्ता सरकार या अन्य किसी ताकतवर से टकराना बखूबी जानते समझते थे। 

उसूलों पर आंच आए तो टकराना ज़रूरी है,

अगर जिंदा है तो जिंदा आना भी जरूरी है।

अपने चुने हुए मूल्यो, मर्यादाओं, मान्यताओं , आदर्शों, सिद्धान्तों एवं उसूलों के लिए अंगद की तरह पांव जमीन पर जमाकर अडिग रहने वाले सुधाकर सिंह ने किसी तरह की लहरों पर सवार होकर राजनीतिक हैसियत प्राप्त करने एवं शासन सत्ता एवं सरकार में पहुंच कर मलाई चांभने का कभी प्रयास ही किया। जनता की भलाई करने की रंगो रवायत में रंगे सुधाकर सिंह ने आजादी के उपरांत बहने वाली तमाम सियासी हवाओं, बयारों और धाराओं के प्रवाह में नहीं बहके। हर तरफ़ के धूल धक्कड़ भरे आंधी तूफान में भी अपने सिद्धांतों विचारों उसूलों आदर्शों के साथ सीना तान कर खड़े रहे। युवा तुर्क चन्द्रशेखर की तरह हर हाल में लहरो से टकराना धारा के विरुद्ध राजनीति करना सुधाकर सिंह की सियासी फितरत थी। जन समस्याओं एवं जन सम्पर्क के प्रति अत्यंत गंभीर एवं गहरे रूप से संवेदनशील रहने वाले सुधाकर सिंह अपने व्यक्तित्व, कृतित्व, चरित्र, सोच ,दृष्टिकोण ,आचरण, व्यवहार शिष्टाचार और हृदय से समाजवादी थे। जाति धर्म विचारधारा एवं अन्य विविध संकीर्णताओं से ऊपर उठकर जनता की सेवा करना सुधाकर की राजनीतिक आदतों में शुमार था। स्वाधीनता उपरांत गांधीवादी मूल्यों मान्यताओं सिद्धान्तों विचारों संकल्पनाओ एवं आदर्शों पर आधारित लोकनायक जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया, मधुलिमये, आचार्य नरेन्द्र देव, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, युवा तुर्क चन्द्रशेखर और धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पाठशाला से शिक्षित प्रशिक्षित सुधारक सिंह आखिरी क़तार में खड़े इंसान के हर तरह के हक हूकूक के लिए सीना तान कर खड़ा रहना अच्छी तरह जानते थे। सहज सरल सरस सहनशील स्वभाव वाले सुधाकर सिंह के अचानक निधन की विश्वास न होने वाली खबर ने जनपद के हर हृदय मन मस्तिष्क को आहत मर्माहत कर दिया एवं लोकतंत्र में यकीन करने वाले हर कलेजे को झकझोर कर रख दिया। ऐसा महसूस हुआ कि - जनपद के आसमान पर हर रोज़ चमकने दमकने एवं हर छत हर घर हर आंगन हर झोपड़ी शीतल चांदनी बिखेरने वाला चांद हमेशा के लिए किसी गहरे घने काले बादल की आगोश में छुप गया। उनके निधन की खबर से पूरा उत्तर प्रदेश आवाक रह गया। अंतिम दर्शन हेतु जन सैलाब उमड़ पड़ा। कला, साहित्य, संस्कृति सामाजिक सरोकारों से जुड़ी विभूतियों एवं अगणित राजनीतिक हस्तियों ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए समवेत स्वर से स्वीकार किया कि जनपद राजनीतिक शून्यता का शिकार हो गया। जिस तरह विकास पुरुष कल्पनाथ राय के निधन के उपरांत जनपद के आसमान पर सृजन रचना निर्माण एवं विकास का सूरज अस्त हो गया या जनपद के सृजन रचना निर्माण एवं विकास पर सूर्य ग्रहण लग गया उसी तरह सुधाकर सिंह के निधन से जनपद के आसमान पर सहकार समन्वय साहचर्य सहिष्णुता सद्भावना समरसता और आपसदारी का चमकता ध्रुवतारा हमेशा के लिए अनंत अंतरिक्ष में खो गया या सहकार समन्वय साहचर्य सहिष्णुता सद्भावना समरसता एवं सड़क पर संघर्ष की राजनीति पर हमेशा के लिए चन्द्र ग्रहण लग गया। सुधाकर सिंह का जन्म दादनपुर अहिरौली भावनपुर में 1958 में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनका जन्म उस दौर में हुआ था जब देश अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था। चारों तरफ गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा और कुपोषण जैसी समस्याए पसरी पड़ी थी।विधायक जी ने इन समस्याओं से अच्छी तरह साक्षात्कार किया था। इसलिए जब भी अवसर आया इन समस्याओं को मिटाने के लिए सड़क पर लड़ते जूझते रहे। भारत में लगभग 6 करोड़ परिवारों का पालन पोषण सड़क से होता है। सड़क के किनारे रोजी-रोटी कमाने वाले लोगों पर जब भी संकट आता सुधाकर सिंह उनके पक्ष में तनकर खड़े हो जाते थे। सुधाकर सिंह को नौजवान अपना आदर्श तथा किसानों बुनकरों व्यापारियों के सड़क के किनारे ठेला खुमचा लगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले सुधाकर सिंह को अपना मसीहा मानते थे।

सुधाकर सिंह बेहतर सामाजिक बदलाव के लिए आवश्यक सोच समझदारी दृष्टिकोण एवं क्रांतिकारी तेवर रखते थे। वस्तुत: सुधाकर सिंह छात्र राजनीति की उपज थे। अपने छात्र जीवन में तीन प्रतिष्ठित महाविद्यालयो के छात्र संघो में पदाधिकारी रहे। 1978 में सर्वोदय डिग्री कॉलेज के अध्यक्ष, मौलाना शिबली नोमानी की महान शैक्षणिक विरासत शिबली नेशनल पी जी कालेज में महामंत्री। उस दौर में नौजवानों के सामने दो विकल्प होता था। अपना कैरियर बनाना या बेहतर समाज बनाना। सुधाकर सिंह ने अपने कैरियर को दांव पर लगाकर देश और समाज बनाने का संकल्प लिया। देश में ताज़ी ताज़ी आजादी मिली थी। चारों तरफ शहादत की शानदार परंपरा की गीत गाए जा रहे थे। देश में त्याग बलिदान एवं संघर्ष की राजनीति का व्यापक चलन कलन था। सुधाकर सिंह ने भी शहीदों से अनुप्राणित होकर त्याग बलिदान और संघर्ष की राजनीति को अपना लिया। इतिहास के ईमानदार विद्यार्थी की तरह सुधाकर सिंह ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पढ़ने लिखने और समझने का प्रयास किया था। अपने भाषणों में 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन से लेकर 1947 तक के आंदोलनकारियों का उल्लेख और बखान करते थे और भगतसिंह चन्द्रशेखर आजाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने का जज्बा सुधाकर सिंह राजनीतिक संघर्षो और विचारों में साफ़-साफ झलकता था। जब कभी जनपद सहित पूर्वांचल का इतिहास लिखा जाएगा तो सामाजिक न्याय, समरसता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और आखिरी क़तार में पक्षखड़े आदमी के पक्ष में आजीवन हिम्मत और हौसले के साथ एक महान योद्धा के रूप में सुधाकर सिंह को याद किया जाएगा। संविधानविद पंडित अलगू राय शास्त्री, क्रांतिकारी झारखंडे राय, शहीद ए उर्दू जय बहादुर, बाबू उमराव सिंह, पंडित रामविलास पाण्डेय, पंडित रामसुंदर पाण्डेय, विकास पुरुष कल्पनाथ राय, श्रद्धेय राजकुमार राय की शानदार राजनीतिक विरासत को आजीवन जीवंत रखने वाले सुधाकर सिंह के व्यक्तित्व कृतित्व और चरित्र से भावी पिढिंयां गर्व और गौरव की अनुभूति के साथ अनुप्राणित होती रहेगी। जनपद के आसमान पर उगता चढता ढलता हर सूरज सदियों तक सुधाकर सिंह के संघर्षों की गवाही देता रहेगा। सुधाकर सिंह जिंदा रहेंगे जनपद के नौजवानो के दिलों में धड़कन बनकर, किसानों मजदूरों मजलूमों और बेहतर समाज के लिए संघर्षरत सीनों में हौसला बनकर। 

सुधाकर सिंह स्वभावत: लोकतंत्रिक चरित्र के राजनेता थे। देश में जब भी लोकतंत्र के उपर खतरा मंडराया जान हथेली पर लेकर लोकतंत्र को बचाने के लिए निकल पड़े। 1975 में जब देश में आपातकाल काल लागू हुआ तो लोकतंत्र को बचाने के लिए लोकतंत्र को बचाने के लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा जो आंदोलन चलाया गया उसमें सुधाकर सिंह हिम्मत और हौसले के साथ हिस्सा लिया। महज़ सत्रह साल की उम्र में जेल की सजा काटी। लोकतंत्र एवं संसदीय शिष्टाचार एवं संस्कृति में उनकी आस्था निष्ठा गहरी गहन एवं अद्वितीय थी। लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप इस लोकतंत्र सेनानी को हर लोकतांत्रिक हृदय आज स्मरण कर रहा है। उनकी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के लिए उनका संघर्षं और हमारी स्मृतियों मे सर्वदा जीवंत रहेंगा। सुधाकर सिंह औपचारिक संसदीय राजनीति की शुरुआत चौधरी चरणसिंह के नेतृत्व में लोकदल से किया था। कालांतर में समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहें। मुलायम सिंह यादव में गहरी निष्ठा रखने वाले सुधाकर सिंह आजीवन समाजवादी पार्टी के झंडे तले राजनीति करते रहे। उनको तीन बार विधानसभा चुनाव में विजय मिली और शानदार नेतृत्व किया। पहली बार 1996 में मधुबन विधानसभा के चुनाव में विकास पुरूष कल्पनाथ राय की धर्मपत्नी डॉ सुधा राय को पराजित कर निर्वाचित हुए । दूसरी बार 2012 में घोसी विधानसभा चुनाव में दिग्गज मंत्री श्री फागू चौहान और बाहुबली मुख्तार अंसारी को पराजित कर निर्वाचित हुए। 1990 के बाद चुनावी राजनीति घोर जातिवादी अपसंस्कृति का शिकार होने। जातिवादी समीकरण एवं सोशल इंजीनियरिंग चुनाव जीतने के औजार बनने लगे। परन्तु सुधाकर सिंह ने सारे जातिवादी समीकरणों की राजनीति को ध्वस्त कर घोसी विधानसभा के राष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित उप चुनाव में दिग्गज मंत्री दारा सिंह चौहान को भारी मतों से परास्त किया। सुधाकर सिंह एक समान शिक्षा व्यवस्था के प्रबल पक्षधर थे मधुबन विधानसभा में विधायक रहते हुए उन्होंने सहायता प्राप्त स्कूलों को दिल खोलकर विधायक निधि से धन वितरित किया ताकि आम आदमी के लिए सस्ते दर पर शिक्षा व्यवस्था कायम रहे।

गिरगिट की तरह रंग बदलती बहुरंगी और बहुरुपिया होती राजनीति के दौर में भी सुधाकर सिंह अंदर और बाहर से एक ही व्यक्तित्व रखते थे। उनके अंदर बाहर के व्यक्तित्व में कोई अन्तर नहीं था। राजनीति में चापलूसी, चाटुकारिता और चमचागिरी के दौर भी सुधाकर सिंह बेबाक, बेलौस, बेधड़क बोलचाल की राजनीतिक शैली वाले राजनेता थे। इस शैली के नाते राजनीति में उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा। राजनीति में अपमान का घूंट पी कर अपने को जीवंत रखने का हुनर सुधाकर सिंह को बखूबी आता था। अपने सिद्धांतों उसूलों के लिए कई बार जहर पीना पड़ा। ज़हर पीकर भी अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए भी अमृत उगलते रहे। क्रांतिकारी धरती मऊ की माटी के इस सच्चे सपूत को जन-मानस अपने मानस पटल से कभी ओझल नहीं होने देगा।

दिल का सूना साज़ तराना ढूंढेगा 

मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढेगा।

 

मनोज कुमार सिंह 

लेखक/साहित्यकार/स्तम्भकार 

मऊ (उ.प्र.)






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