वेतन विवाद में फंसा शहर : बलिया की सड़कों पर कूड़े का पहाड़, जिम्मेदार गायब
गंदगी का घेराव, नेता मौन : बलिया पूछ रहा—हमारी सुनवाई कौन करेगा?
बलिया शहर इन दिनों बदबू और कूड़े के बीच अपनी पहचान बचाए रखने के लिए जूझ रहा है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि पूरा शहर किसी खुले कूड़ेदान में तब्दील नजर आ रहा है। मुख्य सड़कों से लेकर गलियों तक हर जगह कचरा फैला है और हवा में उठती दुर्गंध लोगों के लिए जीना मुश्किल कर रही है।
जिस बलिया को कभी लोग ‘जुहू चौपाटी’ की तर्ज पर साफ-सुथरा और आकर्षक बताते थे, आज वही शहर कूड़े के बोझ तले कराह रहा है। नगरपालिका कर्मचारी पिछले एक हफ्ते से वेतन न मिलने के कारण काम बंद किए हुए हैं। कर्मचारियों की नाराज़गी अब शहर के लिए संकट बन चुकी है और सफाई व्यवस्था पूरी तरह ठप पड़ी है।
उधर, नेता जो चुनावों के वक्त गली-गली घूमकर लोगों से समर्थन मांगते थे, अब प्रोटोकॉल और चुप्पी की दीवारों के पीछे छिपे बैठे हैं। जनता सवाल उठा रही है। जब शहर सड़ रहा है, तब जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी कहां है? प्रशासन की बैठकें और कागज़ी कार्यवाही जारी है, लेकिन हालात में सुधार कहीं दिखाई नहीं दे रहा।
कूड़े का ढेर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और बीमारियों का खतरा तेजी से मंडरा रहा है। बच्चे स्कूल जाते समय नाक पर रुमाल लगाए नजर आते हैं, दुकानदारों की बिक्री पर असर पड़ रहा है और लोग दुर्गंध से बचने के लिए रास्ते बदलने को मजबूर हैं।
शहर की सांसें भारी हो चुकी हैं, लेकिन जिम्मेदार विभागों की नींद अब तक नहीं टूटी। बलिया का यह कूड़ा संकट केवल गंदगी का मामला नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का जीता-जागता सबूत बन गया है। जनता का सवाल बिल्कुल सीधा है। आखिर उनकी सुनवाई कौन करेगा?


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