26 नवंबर—एक तारीख़ जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यही वह दिन है जब वर्ष 1949 में संविधान सभा ने दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान को अंगीकार किया था। हर वर्ष संविधान दिवस हमें न केवल अपने अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाता है, बल्कि इस महान लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ों को समझने का अवसर भी प्रदान करता है।
भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक राष्ट्रीय आकांक्षाओं का दर्पण है। इसमें स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व जैसे उच्च आदर्शों को आधार बनाया गया है, जो हमारे राष्ट्र की आत्मा हैं। संविधान के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समान अवसर, धर्म की स्वतंत्रता और जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
संविधान दिवस हमें उन महान मनीषियों के प्रति भी कृतज्ञ बनाता है, जिन्होंने अथक परिश्रम से लगभग तीन वर्षों में इस अनुपम दस्तावेज़ को तैयार किया। डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें संविधान का मुख्य शिल्पकार कहा जाता है, ने इसे समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के हितों को केंद्र में रखकर तैयार किया। उनके विचार और दृष्टि आज भी हमें सामाजिक समरसता और न्याय की राह दिखाते हैं।
भारत का संविधान आज दुनिया के लिए एक आदर्श है—एक ऐसा संविधान जिसने विविधताओं से भरे इस विशाल राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया। लोकतांत्रिक चुनाव, स्वतंत्र न्यायपालिका, शक्तियों का पृथक्करण और संघीय ढांचा—ये सभी तत्व भारत को एक सशक्त लोक-तंत्र बनाते हैं।
संविधान दिवस का महत्व समय के साथ और भी बढ़ गया है, क्योंकि आज दुनिया अनेक तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है—सामाजिक असमानता, तकनीकी परिवर्तन, सूचना का दुरुपयोग, वैश्विक तनाव, और पर्यावरणीय संकट। ऐसे दौर में हमारे संविधान के मूल सिद्धांत हमें संयम, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ने की सीख देते हैं।
यह दिन हमें हमारे मौलिक कर्तव्यों की याद दिलाता है—देश की एकता और अखंडता बनाए रखने का कर्तव्य, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, तथा स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देना। केवल अधिकारों के प्रयोग से लोकतंत्र मजबूत नहीं होता, बल्कि कर्तव्यों का पालन भी उतना ही आवश्यक है।
लोकतंत्र तभी सफल होता है जब नागरिक सजग, जागरूक और संवेदनशील हों। संविधान दिवस हमें इस जागरूकता का भाव देता है कि लोकतंत्र की रक्षा केवल सरकारों की नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है।
आज, जब भारत विश्व की एक उभरती शक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है, तब संविधान की प्रासंगिकता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। यह केवल शासन की रूपरेखा ही नहीं, बल्कि एक विचार है—एक नए, मजबूत और समावेशी भारत का विचार।
🇮🇳 विवेक, समानता और न्याय—यही है भारतीय संविधान की मूल आत्मा।
डॉ. निर्भय नारायण सिंह, एडवोकेट✍️
पूर्व अध्यक्ष, फौजदारी अधिवक्ता संघ, बलिया (उ.प्र.)



0 Comments