रानी लक्ष्मीबाई जयंती : शौर्य, त्याग और स्वतंत्रता की अमर अग्नि


भारत के इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई का नाम वीरता, स्वाभिमान और देशभक्ति का पर्याय है। 19 नवम्बर का दिन उस अदम्य साहसी रानी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिसने न केवल अंग्रेजी शासन को ललकारा, बल्कि पूरे राष्ट्र में स्वतंत्रता की मशाल जलाई। उनकी जयंती हमें यह स्मरण दिलाती है कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई केवल पुरुषों की नहीं थी, बल्कि उसमें मातृशक्ति ने भी अद्वितीय बलिदान और संघर्ष का योगदान दिया।

1835 में जन्मी मनिकर्णिका, जिनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हुआ और वे लक्ष्मीबाई के नाम से प्रसिद्ध हुईं, बचपन से ही शिक्षा, युद्धकला और राष्ट्रप्रेम के संस्कारों से परिपूर्ण थीं। तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और रणविद्या में निपुण रानी लक्ष्मीबाई ने एक योद्धा की तरह जीवन जिया और मातृभूमि की रक्षा को अपना परम कर्तव्य माना।

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम उनके जीवन का वह निर्णायक मोड़ बना, जिसने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता की अमर नायिका बना दिया। अंग्रेजों द्वारा ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ के तहत झांसी हड़पने के प्रयासों के खिलाफ उन्होंने अडिग होकर कहा—“मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी”—और यह वाक्य भारत की स्वतंत्रता की चेतना का उद्घोष बन गया। मात्र 22–23 वर्ष की आयु में उन्होंने अद्वितीय नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया, अपनी सेना को संगठित किया और अंग्रेजी फौजों का डटकर मुकाबला किया।

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह स्त्री-सशक्तिकरण का जीवंत प्रतीक भी बनीं। उन्होंने समाज में महिलाओं के सम्मान और उनकी भूमिका को नई परिभाषा दी। कठिन परिस्थितियों में भी साहस, संयम और सूझबूझ के साथ वे आगे बढ़ती रहीं। ग्वालियर की धरती पर 1858 में वीरगति को प्राप्त होते समय भी उनके हाथ में तलवार थी और हृदय में मातृभूमि के प्रति अमर प्रेम।

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन भारतीय स्त्रियों की अदम्य शक्ति और राष्ट्रप्रेम की अमिट मिसाल है। आज उनकी जयंती पर हम न केवल उन्हें नमन करते हैं, बल्कि अपने भीतर की देशभक्ति, साहस और कर्तव्यनिष्ठा को भी जागृत करने का संकल्प लेते हैं। उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम यह समझते हैं कि स्वतंत्रता केवल प्राप्त की जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि उसे बनाए रखने के लिए निरंतर संघर्ष और समर्पण आवश्यक है।

रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन हमें यह संदेश देता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए उम्र, परिस्थितियाँ या संसाधन मायने नहीं रखते—मायने रखता है केवल अटूट साहस, निष्ठा और दृढ़ संकल्प। उनका साहसिक जीवन सदियों तक देशवासियों के हृदय में स्वतंत्रता की लौ बनकर प्रज्वलित रहेगा।

*परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️*



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