हर वर्ष 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस (World Polio Day) मनाया जाता है। यह दिन पूरी दुनिया को उस ऐतिहासिक संघर्ष की याद दिलाता है जो इंसानियत ने एक अदृश्य दुश्मन — पोलियो वायरस — के खिलाफ लड़ा। इस दिन को प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जोनस साल्क की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने 1955 में पोलियो की पहली प्रभावी वैक्सीन विकसित की थी और लाखों बच्चों को अपंगता से बचाने का मार्ग खोला।
पोलियो क्या है
पोलियो या पोलियोमायलाइटिस एक अत्यंत संक्रामक बीमारी है जो पोलियो वायरस के कारण होती है। यह मुख्यतः पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है। वायरस शरीर की तंत्रिका प्रणाली (nervous system) पर हमला करता है, जिससे स्थायी लकवा (paralysis) तक हो सकता है। इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन टीकाकरण से इसे पूरी तरह रोका जा सकता है।
वैक्सीन से विजय की कहानी
विश्व में स्थिति
जहाँ अधिकांश देश पोलियो से मुक्त हो चुके हैं, वहीं कुछ देशों — जैसे अफगानिस्तान और पाकिस्तान — में अब भी संक्रमण के sporadic मामले सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनिसेफ (UNICEF), और ग्लोबल पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) मिलकर लगातार अभियान चला रहे हैं ताकि पूरी दुनिया को पोलियो-मुक्त बनाया जा सके।
भारत का योगदान
भारत ने पोलियो उन्मूलन की दिशा में अनुकरणीय कार्य किया है। लाखों आशा, आंगनबाड़ी और स्वास्थ्यकर्मियों ने घर-घर जाकर बच्चों को टीके पिलाए, हर बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, और गाँव तक “हर बच्चा, हर घर तक पोलियो की दो बूंद” पहुँचाई। इस सामूहिक प्रयास ने भारत को विश्व के सामने एक उदाहरण के रूप में स्थापित किया।
आगे की जिम्मेदारी
हालाँकि पोलियो पर काबू पा लिया गया है, पर अभी सतर्कता आवश्यक है। किसी भी देश में एक भी केस सामने आना पूरी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। इसलिए टीकाकरण अभियान को लगातार जारी रखना और जनजागरूकता फैलाना आज भी उतना ही जरूरी है जितना पहले था।
निष्कर्ष
विश्व पोलियो दिवस केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि मानवता की विजय का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि जब विज्ञान, सरकार और समाज मिलकर किसी लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
“दो बूंद जिंदगी की — यही है स्वस्थ भविष्य की नींव।”
जीशान अहमद ✍️
बहेरी, बलिया (उ.प्र.)



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