बलिया की जनता से मज़ाक क्यों? बिजली तारों का सहारा सिर्फ़ बांस क्यों?



बलिया! आज़ादी के 78 साल बाद भी यहां की 75 प्रतिशत से अधिक कालोनियाँ और गाँव बिजली के असली खंभों का मुँह तक नहीं देख पाए हैं। हालात ऐसे हैं कि आज भी जगह-जगह बांस और लकड़ी के सहारे बिजली के तार लटकाए गए हैं। यह नज़ारा किसी पिछड़ी दुनिया का नहीं, बल्कि “डिजिटल इंडिया” और “स्मार्ट सिटी” के नारे लगाने वाले भारत का है।

आश्वासन बनाम हकीकत

ग्रामीण लगातार प्रार्थना पत्र लिखते हैं, जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते हैं। अधिकारी हर बार मीठा आश्वासन देकर चलते बनते हैं। सांसद, विधायक और मंत्रीगण अपनी निधि से चौक-चौराहों का सुंदरीकरण तो करवा देते हैं—क्योंकि वहाँ शिलापट लगता है, फोटो खिंचते हैं, ताली बजती है और सोशल मीडिया पर वाहवाही मिलती है। मगर जहाँ असल ज़रूरत है—विद्युत पोल लगाने की, सुरक्षित आपूर्ति की—वहाँ सबकी आँखें मूँद जाती हैं।

बिजली विभाग की “नज़रें बंद”

विद्युत विभाग कनेक्शन के नाम पर उपभोक्ताओं से सख्ती से पैसों की वसूली तो करता है, लेकिन सुविधाओं की ओर ध्यान नहीं देता। जिन तारों को मजबूत लोहे के खंभों पर होना चाहिए, वे आज भी बांस पर लटके हैं। ज़रा-सी आँधी या बारिश आती है तो जानलेवा हादसे का खतरा मंडराने लगता है।

दर्दनाक हादसा – जीरा बस्ती की मासूमों की बलि

इन लापरवाहियों का नतीजा हाल ही में सामने आया। 23 दिसंबर 2025 को बलिया की जीरा बस्ती में करंट की चपेट में आकर दो मासूम बच्चियों की दर्दनाक मौत हो गई। यह हादसा पूरे जिले को हिला गया। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है और पूरा गाँव ग़ुस्से में है।

इस घटना के बाद जिलाधिकारी ने कड़ी कार्रवाई करते हुए विद्युत विभाग के दो अधिकारियों के निलंबन की संस्तुति की और मृत बच्चियों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपए मुआवज़ा देने की घोषणा की। लेकिन सवाल उठता है—क्या सिर्फ़ निलंबन और मुआवज़ा ही इस लापरवाही का समाधान है? क्या इन मासूम ज़िंदगियों की कीमत चंद लाख रुपए है?

जनता का सवाल –

➡️ क्या सांसद-विधायक और मंत्री सिर्फ़ शिलापट लगवाने के लिए चुने गए हैं?

➡️ क्या प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ़ आश्वासन बाँटना है?

➡️ क्या बलिया के लोगों को सुरक्षित और सुविधाजनक बिजली आपूर्ति का हक़ नहीं है?

अब और सहन नहीं!

बलिया की जनता अब यह दोहरा चरित्र बर्दाश्त नहीं करेगी। एक ओर सरकार गाँव-गाँव बिजली पहुँचाने के बड़े-बड़े दावे करती है, दूसरी ओर हकीकत यह है कि खंभे तक नहीं लगाए गए। यदि यही हालात रहे तो यह न सिर्फ़ सरकार और जनप्रतिनिधियों की नाकामी मानी जाएगी, बल्कि जनता के साथ सरासर धोखा भी कहलाएगा।

👉 बलिया को बिजली चाहिए—सुरक्षित, स्थायी और सम्मानजनक बिजली। न कि बांस पर लटकते मौत के तार।

परिवर्तन चक्र समाचार सेवा 




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