भारत जैसे विविधता से भरे देश में भाषाओं का महत्व अत्यधिक है। यहाँ लगभग 22 से अधिक भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं और सैकड़ों बोलियाँ अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाती हैं। इनमें हिंदी का विशेष स्थान है, क्योंकि यह न केवल सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्य, राजनीति और सामाजिक जीवन को जोड़ने वाला मजबूत सेतु भी है।
इसी महत्त्व को ध्यान में रखते हुए 14 सितंबर को प्रतिवर्ष "हिंदी दिवस" मनाया जाता है। यह वह दिन है जब वर्ष 1949 में संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। यही कारण है कि यह दिन हमारे लिए केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं बल्कि मातृभाषा के सम्मान और उसकी समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प दिवस है।
हिंदी का ऐतिहासिक महत्व
हिंदी का उद्गम संस्कृत से माना जाता है। प्राकृत और अपभ्रंश से गुजरते हुए हिंदी ने अपने स्वरूप को बदला और आज के आधुनिक रूप में हमारे सामने है।
- भक्ति काल में तुलसीदास, सूरदास, कबीर और मीरा बाई जैसे कवियों ने हिंदी को जन-जन की भाषा बनाया।
- रीति काल में कवियों ने श्रृंगार और अलंकारों से इसे सजाया।
- आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा और बच्चन जैसे साहित्यकारों ने हिंदी को साहित्य और समाज में नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
आज हिंदी न केवल साहित्य की भाषा है, बल्कि विज्ञान, तकनीक, पत्रकारिता, राजनीति और व्यापार में भी अपना प्रभाव छोड़ रही है।
हिंदी और भारतीय पहचान
हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने से देश के अलग-अलग क्षेत्रों को जोड़ने में मदद मिली। यह केवल भाषा नहीं, बल्कि भारत की संवेदनाओं, संस्कृति और आत्मा की पहचान है।
- हिंदी सिनेमा (बॉलीवुड) ने इसे वैश्विक मंच पर पहुँचाया।
- इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हिंदी का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी को बढ़ते सम्मान के साथ प्रयोग किया जा रहा है।
हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य
हिंदी दिवस का मकसद सिर्फ कार्यक्रम आयोजित करना या भाषण देना नहीं है। इसका मूल उद्देश्य है –
- लोगों को हिंदी के महत्व से अवगत कराना।
- युवा पीढ़ी में मातृभाषा के प्रति गर्व की भावना जगाना।
- अंग्रेज़ी और अन्य विदेशी भाषाओं की अंधाधुंध नकल छोड़कर हिंदी में आत्मविश्वास से काम करने की प्रेरणा देना।
- हिंदी साहित्य, पत्रकारिता और तकनीकी लेखन को प्रोत्साहित करना।
आज के दौर में हिंदी की चुनौतियाँ
भले ही हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, लेकिन इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है—
- अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रभाव और आधुनिकता की आड़ में हिंदी की अनदेखी।
- नौकरी और करियर में हिंदी के बजाय विदेशी भाषाओं को प्राथमिकता।
- शहरी समाज में हिंदी बोलने पर हीन भावना।
यदि इन चुनौतियों पर ध्यान न दिया गया तो आने वाली पीढ़ियाँ अपनी ही मातृभाषा से दूर हो सकती हैं।
हिंदी का भविष्य और हमारी जिम्मेदारी
आज आवश्यकता है कि हम हिंदी को केवल बोलचाल की भाषा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे आधुनिक विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और शोध की भी भाषा बनाएँ।
- विद्यालयों और महाविद्यालयों में हिंदी माध्यम को प्रोत्साहन मिले।
- हिंदी में नई किताबें, रिसर्च पेपर और डिजिटल कंटेंट तैयार हों।
- माता-पिता अपने बच्चों को हिंदी बोलने और लिखने के लिए प्रेरित करें।
हमें यह समझना होगा कि अंग्रेज़ी सीखना बुरा नहीं है, लेकिन हिंदी को नज़रअंदाज़ करना आत्मसम्मान से समझौता है।
निष्कर्ष
हिंदी हमारी आत्मा की भाषा है। यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है और राष्ट्रीय एकता का मजबूत स्तंभ है। हिंदी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान देंगे और इसे आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाएँगे।
"हिंदी का सम्मान, भारत का अभिमान है।"
✍️ परिवर्तन चक्र समाचार सेवा*


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