वैकुंठ चतुर्दशी : भगवान विष्णु और भगवान शंकर के अद्भुत संगम का पावन दिवस


हरि-हर का मिलन ही वैकुंठ चतुर्दशी का संदेश है, जब भक्ति, समर्पण और सद्भाव का संगम होता है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों के उपासकों के लिए अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन हरि (विष्णु) और हर (शिव) दोनों की एक साथ पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है।

वैकुंठ चतुर्दशी से जुड़ी कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन वाराणसी में भगवान शंकर की आराधना कर उन्हें हजार कमलों का अर्घ्य अर्पित किया था। जब एक कमल कम पड़ गया तो भगवान विष्णु ने अपनी एक आंख (कमल नयन) अर्पित करने का संकल्प लिया। इस समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें वरदान दिया कि इस दिन जो भी भक्त हरि-हर की एक साथ उपासना करेगा, उसे वैकुंठ (मोक्षलोक) की प्राप्ति होगी।

इस दिन प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त पूजा की जाती है।

- भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित किया जाता है।

- भगवान शंकर को बेलपत्र, धतूरा, गंगाजल आदि चढ़ाया जाता है।

- कई श्रद्धालु रात्रि जागरण कर दीपदान करते हैं तथा गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है।

वैकुंठ चतुर्दशी केवल धार्मिक अनुष्ठान का दिन नहीं, बल्कि एकता, सौहार्द और समर्पण का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भले ही उपासना के मार्ग अलग हों, परंतु अंतिम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति ही है। भगवान विष्णु और भगवान शिव का यह मिलन संदेश देता है कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा और मानवता के प्रति करुणा ही सच्ची भक्ति है।

वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर व्यक्ति को यह प्रेरणा देता है कि जीवन में अहंकार, वैमनस्य और द्वेष को त्यागकर भक्ति और सद्भाव के पथ पर चला जाए। जब हर मन में हरि और हर दोनों बस जाएँ, तभी सच्चे अर्थों में “वैकुंठ” की अनुभूति होती है।

“हरि हर एक हैं, रूप हैं दो—प्रेम और भक्ति से ही खुलते हैं वैकुंठ के द्वार।”

परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️



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