नवरात्रि भारतवर्ष का एक महान और पावन पर्व है, जिसमें नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। प्रत्येक दिन एक विशेष स्वरूप की आराधना की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। यह रूप साधना, तपस्या और संयम का प्रतीक माना जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माँ ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत तेजस्वी और शांत है। उनके दाएँ हाथ में जपमाला और बाएँ हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है। इस रूप से वे साधना और तप की शक्ति का संचार करती हैं। ऐसा विश्वास है कि ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना करने से भक्त को कठिन परिस्थितियों को सहने का धैर्य और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर की अर्धांगिनी के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने वर्षों तक कठिन तपस्या की और अपने संयम एवं भक्ति से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया। उनकी कठोर साधना और तप ने संसार को यह संदेश दिया कि धैर्य और संयम से हर लक्ष्य को पाया जा सकता है।
पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन सुबह स्नानादि कर शुद्ध मन से माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
- सबसे पहले कलश स्थापना और दीप प्रज्वलित किया जाता है।
- माँ को सुगंध, पुष्प, अक्षत, रोली और चंदन अर्पित किया जाता है।
- उन्हें सफेद वस्त्र और सफेद पुष्प प्रिय हैं, अतः यही चढ़ाना शुभ माना जाता है।
- भोग में सामान्यतः शक्कर (चीनी) अर्पित करने का महत्व है।
विशेष मंत्र
माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करते समय निम्न मंत्र का जाप करना फलदायी माना गया है –
"ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः"
इस मंत्र का जाप करने से साधक को अपार मानसिक शक्ति, आत्मसंयम और तपस्या की सिद्धि प्राप्त होती है।
महत्व और फल
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में धैर्य, साहस और तपस्या की शक्ति का विकास होता है। भक्त को कठिन समय में भी सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करके भक्त न केवल सांसारिक जीवन में शांति और संयम पाते हैं, बल्कि उन्हें आत्मज्ञान और मोक्ष की राह भी सहज हो जाती है।
1. पहला दिन – शैलपुत्री
2. दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी
3. तीसरा दिन – चंद्रघंटा
4. चौथा दिन – कूष्माण्डा
5. पाँचवाँ दिन – स्कंदमाता
6. छठा दिन – कात्यायनी
7. सातवाँ दिन – कालरात्रि
8. आठवाँ दिन – महागौरी
9. नवाँ दिन – सिद्धिदात्री
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