पितृ पक्ष का महत्व
सनातन धर्म में पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) को अत्यंत पवित्र काल माना गया है। हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तक (लगभग 16 दिन) पितृ पक्ष मनाया जाता है। इसे महालय पक्ष भी कहा जाता है। इस दौरान अपने पितरों (पूर्वजों) के तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का विधान है।
मान्यता है कि इस समय पितरों की आत्माएँ भूलोक पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और भोजन की अपेक्षा करती हैं। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक श्राद्ध करता है, उसे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं, जो लोग पितरों को याद नहीं करते, उनके जीवन में बाधाएँ और पितृदोष उत्पन्न होता है।
2025 में पितृ पक्ष की तिथियाँ
इस वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा 07 सितंबर को है। इसके अगले दिन से पितृ पक्ष की शुरुआत होगी और 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन होगा।
अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध कहाँ किया जाता है?
सामान्य पितरों का श्राद्ध गया, गया घाट, हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, पुष्कर आदि तीर्थों पर किया जाता है। लेकिन जिनकी मृत्यु अकाल (युवा अवस्था, दुर्घटना, आत्महत्या, असामयिक या अस्वाभाविक मृत्यु) से हुई हो, उनके श्राद्ध का विधान विशेष रूप से गया जी के प्रेतशिला पर्वत पर बताया गया है।
प्रेतशिला पर्वत
- गया (बिहार) स्थित प्रेतशिला पर्वत पर अकाल मृत पितरों का पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है।
- पर्वत के शिखर पर एक प्रसिद्ध प्रेतशिला वेदी है।
- मान्यता है कि यहाँ श्राद्ध करने से अकाल मृत आत्माओं को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है।
- यहाँ पर सत्तू से पिंडदान करने का विशेष महत्व है।
- सूर्यास्त के बाद इस पर्वत पर कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया जाता और न ही रात में ठहरने की अनुमति है।
पितृ पक्ष में अष्टमी का विशेष महत्व
गरुड़ पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के अनुसार, अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध आश्विन मास की अष्टमी तिथि को करना श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन यदि विशेष विधि से पिंडदान और तर्पण किया जाए तो पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार पर से पितृदोष दूर हो जाता है।
श्राद्ध विधि
- तर्पण – जल, काला तिल, पुष्प और कुशा से पितरों को तर्पण अर्पित करें।
- पिंडदान – चावल, जौ, तिल और सत्तू से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं।
- ब्राह्मण भोजन – पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण को भोजन कराना और दक्षिणा देना आवश्यक है।
- दान – वस्त्र, अन्न, गौ, धान्य और ताम्बूल का दान पुण्यकारी माना गया है।
धार्मिक मान्यताएँ और लाभ
- पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे अपने वंशजों को दीर्घायु, संतान सुख, समृद्धि और यश का आशीर्वाद देते हैं।
- जिन परिवारों पर पितृदोष हो, वे इस अवधि में विधिपूर्वक श्राद्ध करके जीवन की बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं।
- कहा जाता है कि पितरों की प्रसन्नता देवताओं की प्रसन्नता से भी अधिक फलदायी होती है।
निष्कर्ष
पितृ पक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पवित्र अवसर है। खासतौर पर अकाल मृत आत्माओं के श्राद्ध का विधान गया जी की प्रेतशिला पर इसलिए किया गया है ताकि उनकी आत्माएँ शांति और मोक्ष को प्राप्त कर सकें।
इस पितृ पक्ष (8 सितंबर से 21 सितंबर 2025 तक) अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित करें। इससे न केवल पितरों की आत्मा तृप्त होगी, बल्कि आपका परिवार भी सुख-समृद्धि और शांति का अनुभव करेगा।
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