जननायक चंद्रशेखर जी की पुण्यतिथि पर विशेष स्मरण


आज 8 जुलाई को हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, जन-जन के प्रिय नेता, निर्भीक विचारक और समाजवाद की मशाल को जीवन पर्यंत प्रज्वलित रखने वाले चंद्रशेखर जी की पुण्यतिथि पर उनकी युगांतरकारी साधना को नमन करते हैं। उनका जीवन भारतीय लोकतंत्र की धरोहर और राजनीति में नैतिक मूल्यों का अमिट उदाहरण है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर जी का जन्म 1 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के छोटे से गाँव इब्राहीमपट्टी में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। विपरीत परिस्थितियों में भी उनके मन में राष्ट्रसेवा और समाजोत्थान की गहरी आकांक्षा जन्मी। यही संकल्प उन्हें उच्च शिक्षा के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय तक ले गया।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र जीवन में ही उनके व्यक्तित्व में नेतृत्व क्षमता के तेजस्वी अंकुर फूट पड़े। स्वतंत्रता आंदोलन और जयप्रकाश नारायण जैसे विचारकों के आदर्शों ने उनके मन को गहराई से प्रभावित किया।

राजनीतिक यात्रा की शुरुआत

स्वतंत्रता के बाद चंद्रशेखर जी ने प्रजासमाजवादी पार्टी से सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। बाद में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आए और शीघ्र ही अपनी निर्भीकता, वक्तृत्व-कौशल और सिद्धांतवादी दृष्टिकोण के कारण देशभर में एक अलग पहचान बना ली। वे 1962 में राज्यसभा के सदस्य बने।

संसद में उनके ओजस्वी भाषण और गरीब-पीड़ित जनता के हक में स्पष्ट विचार रखते हुए उन्होंने सत्तापक्ष और विपक्ष—दोनों को समय-समय पर आईना दिखाया। इस कारण उन्हें “युवातुर्क” कहा जाता था।

भारत यात्रा – एक ऐतिहासिक पहल

सन् 1983 में चंद्रशेखर जी ने भारत यात्रा का संकल्प लिया।

🚩 करीब 4260 किलोमीटर की यह ऐतिहासिक पदयात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से दिल्ली तक निकाली गई।

🚶‍♂️ 6 महीने तक चलने वाली यह यात्रा उनके व्यक्तित्व की प्रतिबद्धता और जनता से जीवंत जुड़ाव का प्रमाण बनी।

इस यात्रा के माध्यम से उन्होंने देश के गाँव-गाँव जाकर किसानों, मजदूरों, आदिवासियों और वंचित तबकों की पीड़ा को अपनी आँखों से देखा और उनके संघर्ष को अपना संकल्प बनाया।

भारत यात्रा ने उनके राजनीतिक जीवन को नई ऊँचाई दी और उन्हें “जननायक” की उपाधि दिलाई।

प्रधानमंत्री का अल्पकालीन, लेकिन ऐतिहासिक कार्यकाल

10 नवम्बर 1990 को जब देश राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फँसा था, चंद्रशेखर जी ने प्रधानमंत्री का दायित्व स्वीकार किया। यह कालखंड आर्थिक संकट, विदेशी मुद्रा की गंभीर कमी और उथल-पुथल भरी राजनीति का था।

उनके प्रधानमंत्री बनने पर कई लोग आशंकित थे कि वे इतने विकट समय में कैसे देश का नेतृत्व करेंगे। लेकिन उन्होंने अदम्य साहस और स्पष्ट दृष्टि का परिचय देते हुए कई साहसी फैसले किए।

विशेषकर जब देश के पास विदेश व्यापार के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं बची, तब रिज़र्व बैंक में देश का सोना गिरवी रखने का ऐतिहासिक निर्णय लेकर उन्होंने भारत को डिफॉल्ट होने से बचा लिया। यह निर्णय भले ही विवादित हुआ, परंतु उस समय की अनिवार्यता थी और बाद में आर्थिक स्थिरता लाने में मील का पत्थर साबित हुआ।

उनका कार्यकाल भले ही कुछ महीनों तक सीमित रहा, लेकिन उनके नेतृत्व ने देश में नीति-निर्धारण की गंभीरता का उदाहरण पेश किया।

विचारधारा और मूल्यों के प्रति अडिग निष्ठा

चंद्रशेखर जी राजनीति को जनसेवा का माध्यम मानते थे, न कि सत्ता का साधन।

  • उनका जीवन सादगी, साहस और सिद्धांत के प्रति समर्पण का प्रतीक था।
  • वे आजीवन समाजवाद, लोकतांत्रिक मूल्यों और न्याय के पक्षधर रहे।
  • उन्होंने राजनीति में गिरते मूल्यों और अवसरवाद पर अनेक बार तीखी आलोचना की।

उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं—सत्ता की चकाचौंध से दूर रहते हुए जनता की पीड़ा को समझना, लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखना और संविधान की आत्मा का संरक्षण करना।

लोकप्रियता और सम्मान

उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा आकर्षण था :–
🔹सादा जीवन
🔹गहरी वैचारिक प्रतिबद्धता
🔹सत्य बोलने का साहस
🔹जनता के बीच सीधा संवाद
यही कारण था कि सभी दलों और समाज के हर वर्ग में उनके प्रति गहरा सम्मान था।

विरासत और प्रेरणा

8 जुलाई 2007 को उनका निधन हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में अपार जनसैलाब उमड़ा—गाँव के किसान से लेकर बड़े-बड़े नेता उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। यह उनके प्रति जनता की सच्ची श्रद्धा का प्रमाण था।

उनकी जीवनगाथा हर भारतीय को यह संदेश देती है :–
👉 राजनीति का असली उद्देश्य सत्ता की लोलुपता नहीं, सत्य और न्याय के लिए संघर्ष है।
👉 जब कोई नेता जनता की नब्ज समझता है, तब वह युगपुरुष बनता है।

श्रद्धांजलि

आज उनकी पुण्यतिथि पर हम सभी उन्हें कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हैं और प्रण करते हैं कि उनके सिद्धांतों और आदर्शों को जीवंत बनाए रखेंगे।

नमन है उस जननायक को, जिसने सत्ता की कुर्सी को साध्य नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम माना।

चंद्रशेखर जी अमर रहें।






अजय कुमार सिंह ✍️

संपादक 

परिवर्तन चक्र, बलिया।



 



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