ऐसे लोगों से भूलकर भी नहीं करनी चाहिए मित्रता, जानिये क्या कहती है चाणक्य नीति


आचार्य चाणक्य के मुताबिक जो इंसान इस बात का ख्याल नहीं रखते और दोस्तों के चयन में सावधानी नहीं बरतते हैं, उन्हें हर पल चुनौतियों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने जीवन के बारे में कई अच्छी बातें बताई हैं। चाणक्य नीति के मुताबिक दोस्त बनाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, हर किसी को तुरंत दोस्त का दर्जा नहीं देना चाहिए। आचार्य चाणक्य के मुताबिक किसी भी इंसान की सफलता में अच्छी संगति का बहुत बड़ा योगदान होता है। आइए जानते हैं कि दोस्ती में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्।

कदाचित् कुपितं मित्रं सर्व गुह्यं प्रकाशयेत्।।

जो मित्र खोटा है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए और जो मित्र है, उस पर भी अति विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि वह मित्र कभी नाराज होकर सारी गुप्त बातें प्रकट कर दे। चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय के छठे श्लोक में चाणक्य का कहना हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास करने का प्रश्न ही नहीं उठता, परंतु उनका यह भी कहना उचित है कि अच्छे मित्र के संबंध में भी पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि वह नाराज हो गया तो सारे भेद खोल देगा।

आज बड़े-बड़े नगरों में जो अपराध बढ़ रहे हैं, जो कुकर्म हो रहे हैं, उनके पीछे परिचित व्यक्ति ही अधिक पाए जाते हैं। ‘घर का भेदी लंका ढाए’-यह कहावत गलत नहीं है। जो बहुत अच्छा मित्र बन जाता है, वह घर के सदस्य जैसा हो जाता है। व्यक्ति भावुक होकर उसे अपने सारे भेद बता देता है, फिर जब कभी मन-मुटाव उत्पन्न होते हैं तो वह कथित मित्र ही सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला सिद्ध होता है। ऐसा मित्र जानता है आपके मर्मस्थल कौन से हैं। घर में काम करने वाले कर्मचारी के बारे में भी इस प्रकार की सावधानी रखना आवश्यक है।

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विज्ञकुम्भं पयोमुखम् ।।

जो पीठ पीछे कार्य को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी – मीठी बातें बनाए , ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दूध भरा हुआ है परंतु अंदर विष हो।

चाणक्य नीति में दूसरे अध्याय के पांचवे श्लोक में चाणक्य ने लिखा है कि जो मित्र सामने चिकनी-चुपड़ी बातें बनाता हो और पीठ पीछे उसकी बुराई करके कार्य को बिगाड़ देता हो, ऐसे मित्र को त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध भरा है परंतु अंदर विष भरा हुआ हो। ऊपर से मीठे और अंदर से दुष्ट व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता। यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि ऐसा मित्र आपके व्यक्तिगत और सामाजिक वातावरण को भी आपके प्रतिकूल बना देता है।

दुराचारी दुरदृष्टिर्दुराऽऽवासी च दुर्जनः।

यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्रं विनश्यति।।

दूसरे अध्याय के उन्नीसवें श्लोक के अनुसार बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरे को हानि पहुंचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है। सभी साधु-संतों, ऋषि-मुनियों का कहना है कि दुर्जन का संग नरक में वास करने के समान होता है, इसलिए मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

आचार्य ने यहां यह भी संकेत किया है कि मित्रता करते समय यह भली प्रकार से जांच-परख लेना चाहिए कि जिससे मित्रता की जा रही है, उसमें ये दोष तो नहीं हैं। यदि ऐसा है, तो उससे होने वाली हानि से बच पाना संभव नहीं। इसलिए ज्यादा अच्छा है कि उससे दूर ही रहा जाए।




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