चैत्र नवरात्रि इन राशियों के लिए रहेगी खास, इस काम से मिलेगी साढ़ेसाती ढैय्या से मुक्ति


चैत्र नवरात्रि का पर्व कल 2 अप्रैल से आरंभ हो रहा है। श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मां प्रसन्न होती हैं।

चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो रही है। जिसका समापन 11 अप्रैल को होगा। नवरात्रि के 9 दिन भक्तों के लिए बेहद खास होते हैं। नवरात्रि में की गई उपासना लाभकारी होती है। चैत्र नवरात्रि के दौरान मां जगन्माता की पूजा करने से कई लाभ मिलते है। साथ ही शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से पीड़ित लोगों को माता की किस तरह पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

शनि से प्रभावित राशियां :

फिलहाल धनु, मकर और कुंभ राशि के जातक शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित हैं। उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या हैं। जिस कारण इन्हें मानसिक परेशानी झेलनी पड़ रही है। इन राशियों के लोगों को चैत्र नवरात्रि में उपासना करनी चाहिए।

ऐसे रखें व्रत :

अगर आप लगातार 9 दिन व्रत नहीं रख सकते हैं। तब 1, 3, 5 या 7 संख्या में उपवास रखें। इस तरह व्रत रखने से भी फल मिलता है।

श्री दुर्गा चालीसा का करें पाठ : 

नवरात्रि के नौ दिनों तक स्नान कर साफ कपड़े पहनें। फिर सच्चे मन से नीचे दिए गए श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुख हरनी।। निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिंहू लोक फैली उजियारी।। शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटी विकराला।। रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे।। तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना।। अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुंदरी बाला।। प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।। शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।। रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।

धर्यो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा।। रक्षा करि प्रहलाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।। लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं।। क्षीरसिंधु में करत विलासा। दयासिंधु में करत विलासा। दयासिंधु दीजै मन आसा।। हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखारी।। मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरि बगला सुख दाता।। श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्नभाल भव दुख निवारिणी।। केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी।। कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै।। सोहै अस्त्र और तिरशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।। नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिंहू लोक में डंका बाजत।।

शुम्भ निशुम्भ दनुज तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे।। महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अध भार मही अकुलानी।। रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा।। परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब।। अमरपुरी अरू बासव लोका। तब महिमा सब रहे अशोका।। ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी।। प्रेम भक्ति से जो यश आवें।। ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।। जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।। शंकर आचारज तप कीनो। काम अरू क्रोध जीति सब लीनो।। निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।। शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो।। शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी।। भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।। मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुख मेरो।। आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें।। शत्रु नाश कीजै महरानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।। करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।। जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।। दुर्गा चालीसा जो गावै। सब सुख भोग परमपद पावै।। देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

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