*सियासत*


मत समझों खुशहाल सियासत।

मक्कारी का जाल सियासत।।


आशाओं के ख़्वाब दिखाकर,

छीने रोटी दाल सियासत।


ओढ़ें बैठे नेता सारे,

भेड़ों की ये खाल सियासत।


रोज नए घोटालें करती,

हड़प गई सब माल सियासत।


कुर्सी की खातिर है चलती,

ऐसी-वैसी चाल सियासत।


भाई भतीजावाद यहाँ पर,

लोकतंत्र बस, ढाल सियासत।


झूठे वादे, झूठी बातें,

झूठों की सुरताल सियासत ।


सुमन जैन ''सत्यगीता''✍️

साभार-विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा



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