लखनऊ। यूपी की राजनीति से जुड़ी बड़ी खबर है। शुक्रवार को होली के दिन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। करीब एक घंटे चली मुलाकात में केंद्रीय मंत्री और यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल भी मौजूद रहे। राजभर ने 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके लड़ा था। ऐसे में शाह के साथ उनकी इस मुलाकात से सियासी गलियारे में चर्चा शुरू हो गई।
सियासी जानकारों का कहना है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो ओपी राजभर नई योगी सरकार में शामिल हो सकते हैं। यह बात इसलिए भी कही जा रही है, क्योंकि योगी सरकार के शपथ ग्रहण से पहले ही उन्होंने मुलाकात की है। तीन दिन पहले भी ओपी राजभर ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की थी। यानी 4 दिनों में ओपी राजभर दो बार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर चुके हैं। ओपी राजभर ने भाजपा के सामने रखी अपनी बात।
सूत्र बताते हैं कि अमित शाह के सामने राजभर ने अपनी मांग के साथ अपना पक्ष रखा। अब आगे का फैसला शाह और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को करना है। माना यह भी जा रहा है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। क्योंकि पूर्वांचल क्षेत्र में लोकसभा की करीब 26 सीटें ऐसी हैं, जहां राजभर समाज का प्रभाव है। वहीं, 14 लोकसभा सीटें तो ऐसी हैं जहां पर राजभर समाज का वोट नतीजों पर निर्णायक रहता है। ऐसे में यह भाजपा के लिए 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अहम हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव में राजभर ने भाजपा के साथ रहकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि, बीच में ही राजभर का मन बदल गया है और वह भाजपा से अलग हो गए। इसके बाद, 2022 में राजभर ने सपा के साथ चुनाव लड़ा था। इसमें 6 सीटों पर जीत हासिल की है।
पूर्वांचल में राजभर वोटर काफी अहम :
बता दें कि पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समुदाय का वोट राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर का यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र की राजनीति में दबदबा है। 2022 के चुनाव में जहां एक तरफ भाजपा पश्चिम से लेकर अवध तक मजबूत नजर आई। वहीं, पूर्वांचल के चार जिलों में भाजपा का खाता तक नहीं खुला। गाजीपुर, अम्बेडकरनगर, मऊ, बलिया, जौनपुर, आजमगढ़ में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
इसके बाद भाजपा अभी से लोकसभा चुनाव को लेकर जुट गई है। भाजपा भी चाहती है कि ओमप्रकाश राजभर उनके साथ आ जाएं। यूपी में राजभर समुदाय की आबादी करीब 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है। गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में इनकी अच्छी खासी आबादी है, जो सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते है। इसका असर 2022 के चुनाव में दिखाई भी पड़ा।
साल 2009 के आम चुनावों में अकेले दम हासिल किए थे अच्छे खासे वोट :
सुभासपा ने साल 2014 में मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल व दो-तीन अन्य छोटे दलों के साथ समझौता किया। इन चुनावों में सुभासपा गठबंधन के प्रत्याशियों को 19 लोकसभा सीटों पर 25 हजार से 1.5 लाख के बीच वोट मिले थे।
सुभासपा ने साल 2009 के आम चुनावों में अकेले दम पर ही अच्छे वोट बटोरे थे। साल 2009 के लोकसभा चुनावों में चंदौली में सुभासपा को 1.03 लाख वोट, बलिया में सुभासपा को 75 हजार वोट, सलेमपुर में सुभासपा को 65 हजार वोट, घोसी में सुभासपा को 75 हजार वोट, वाराणसी में सुभासपा को 40 हजार वोट और बस्ती में सुभासपा को करीब 45 हजार वोट मिले थे।
15 सालों तक संघर्ष के बाद 2017 में सुभासपा ने किया था एलायंस :
करीब 15 सालों तक संघर्ष के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर भाजपा जैसी बड़ी पार्टी से समझौता करने का मौका मिला था। अगर कहें कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछले चुनावों में उन्हें मिलने वाले वोटों की ताकत देख उन्हें साथ लेने का कूटनीतिक फैसला लेने पर मजूबर हुआ, तो गलत न होगा।
जुलाई 2016 में विधानसभा चुनावों से पहले अमित शाह ने मऊ के रेलवे मैदान में उनके साथ रैली कर उन्हें साथ लेने की घोषणा कर पूर्वांचल में बड़ा दाव खेला था। इसका असर भी हुआ। सुभासपा के चार विधायक चुने गए थे। इसके बावजूद अपनी पार्टी और कैडर को उन्होंने शांत नहीं बैठने दिया।
राज्य मंत्रिमंडल में वाजिब हिस्सेदारी न मिलने से नाराज ओम प्रकाश न केवल भाजपा को आड़े हाथों लेते रहे, बल्कि सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे और एक साल के बाद भाजपा से अलग हो गए थे।
साभार- मानवी मीडिया
addComments
Post a Comment