जानें उत्पन्ना एकादशी की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व


आइए जानें इस साल अगहन के महीने में कब मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी और इसका क्या महत्व है।  

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर एक महीने में दो एकदशी तिथियां होती हैं और पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं, जिनका विशेष महत्त्व बताया गया है। इन सभी एकादशी तिथियों में मुख्य रूप से भगवान् विष्णु की पूजा की जाती है और पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करने से उनकी कृपा का फल भी मिलता है व समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इन्हीं एकदशी तिथियों में से अगहन मास में होने वाली उत्पन्ना एकादशी का अलग महत्व बताया गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी में विष्णु जी का माता लक्ष्मी के साथ पूजन करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह एकादशी तिथि अगहन महीने के कृष्ण पक्ष में होती है। आइए अयोध्या के जाने माने पंडित राधे शरण शास्त्री जी से जानें इस सालकब मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी और इसका क्या महत्व है।

उत्पन्ना एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त : 

-उत्पन्ना एकादशी आरंभ: 30 नवंबर 2021, मंगलवार प्रातः 04:13 बजे

-उत्पन्ना एकादशी समापन: 01 दिसंबर 2021, बुधवार मध्यरात्रि 02: 13 बजे

-पारण तिथि हरि वासर समाप्ति का समय: प्रातः 07:34 मिनट

-द्वादशी व्रत पारण समय: 01 दिसंबर 2021, प्रातः 07:34 बजे से 09: 01 मिनट तक

उत्पन्ना एकादशी व्रत और पूजा विधि :

-हिंदू धर्म के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने वाले लोगों को नियम एक दिन पूर्व ही इस व्रत का आरंभ कर देना चाहिए।

-यह व्रत दशमी तिथि से ही आरंभ करें और इसी दिन से फलाहार का पालन करें।

-दशमी तिथि पर सूर्यास्त से ही पहले भोजन कर लें। इस दिन तामसिक भोजन से परहेज करें और सात्विक और हल्का आहार लें।

-उत्पन्ना एकादशी को ब्रह्ममुहूर्त में उठककर स्नान आदि करके व्रत का संकल्प करें।

-मंदिर में भगवान विष्णुजी के समक्ष दीपक जलाएं और फल-फूल आदि से उनका पूजन करें।

-उत्पन्ना एकादशी पर पूरे दिन उपवास रखकर श्रीहरि का स्मरण करें और माता लक्ष्मी के साथ पूजन करें।

-द्वादशी को प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और पुनः पूजन आरंभ करें और व्रत का पारण पूरे विधि विधान से करें।

-इस दिन गरीबों को भोजन कराने और दान पुण्य करने का भी विशेष महत्व है।

उत्पन्ना एकादशी का महत्व :

ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से धर्म और मोक्ष फलों की प्राप्ति होती है। सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और कई यज्ञों के बराबर फल मिलता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने का फल तीर्थ स्थानों में स्नान दान करने से मिलने वाले पुण्य फलों से भी ज्यादा होता है। इस व्रत को रखने से मन को शांति मिलती है और शरीर के साथ हृदय भी स्वस्थ रहता है। उत्पन्ना एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु जी की पूरे भक्ति भाव से पूजा करने का विधान है।

उत्पन्ना एकादशी की कथा :

उत्पन्ना एकादशी की कथा के अनुसार सतयुग में मुरु नामक राक्षस ने एक समय देवताओं पर विजय हासिल कर इंद्र देवता को अपना बंधक बना लिया था। तभी देवता भगवान शंकर (जानें शिवलिंग की पूरी परिक्रमा क्यों नहीं करनी चाहिए)की शरण में पहुंचे। भोलेनाथ ने देवताओं को विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी। उसके बाद देवताओं ने विष्णु जी के पास जाकर अपनी सारी व्यथा सुनाई। ये सब सुनने के बाद विष्णु जी ने राक्षसों को तो परास्त कर दिया, लेकिन दैत्य मुरु वहां से भाग निकला। भगवान विष्णु ने मुरु को भागता हुआ देखकर लड़ाई बंद कर दी और बद्री आश्रम की गुफा में विश्राम करने लगे। उसके बाद राक्षस मुरु जब विष्णु जी को मारने वहां पहुंचा तो विष्णु जी के शरीर से एक स्त्री की उत्पत्ति हुई. उस स्त्री ने मुरु दैत्य का अंत कर दिया. उस कन्या ने विष्णु जी को बताया कि मैं आपके शरीर से उत्पन्न हुई हूं और आपका ही अंश हूं। इससे खुश होकर विष्णु भगवान ने उस कन्या को वरदान देते हुए कहा कि तुम संसार में माया जाल में उलझे हुए लोग, जो मुझ से विमुख हो गए हैं, उन्हें मुझ तक लाने में सक्षम रहोगी. भगवान विष्णु जी ने कहा कि तुम्हारी पूजा-अर्चना करने वाले भक्त हमेशा सुखी रहेंगे। आगे चलकर यही कन्या एकादशी कहलाने लगीं।

इस प्रकार उत्पन्ना एकादशी में विधि विधान से विष्णु पूजन करें जिससे सभी कष्टों से मुक्ति मिले और मनोकामनाओं की पूर्ति हो सके। 





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