बलिया में पर्यटन विकास हेतु विद्यमान हैं पर्याप्त सम्भावनाएँ : डा० गणेश पाठक (पर्यावरणविद्)


विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष :-

बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर  महाविद्यालय दुबेछपरा के पूर्व प्राचार्य एवं वर्तमान में जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के शैक्षणिक निदेशक  पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि जनपद बलिया विविधताओं एवं विभिन्नताओं से भरा पड़ा है। खनिज संसाधन विहीन इस जिला में अभी तक कोई बड़ा उद्योग भी स्थापित नहीं हो सका। कुछ लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापित हुए किंतु वो भी दुर्व्यवस्था के शिकार होकर बंद हो गए। कृषि ही एकमात्र अर्थव्यवस्था का स्रोत है। यही कारण है कि इस जिला में बेरोजगारों की भरमार है और जिला का विकास भी कुंठित हो गया है। ऐसी स्थिति में जिले में रोजगार बढ़ाने हेतु एवं अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत करने हेतु जिला में "पर्यटन उद्योग" की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं।

बलिया जिला में खासतौर से जल पर्यटन धार्मिक-ऐतिहासिक पर्यटन, ग्राम पर्यटन, हालीडे पर्यटन आदि की पर्याप्त संभावनाएं विद्यमान हैं।

धार्मिक- ऐतिहासिक पर्यटन -

बलिया धार्मिक-ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। धार्मिक दृष्टि से इस जनपद में अनेक पौराणिक स्थल हैं। जिसमें भृगु ऋषि का मंदिर, बालेश्वर मंदिर, परशुराम ऋषि का मंदिर, पाराशर ऋषि का मंदिर, वनदेवी का मंदिर, ब्रह्माणी देवी का मंदिर, शंकर भवानी का मंदिर, मंगला भवानी का मंदिर, कपिलेश्वरी भवानी का मंदिर, उचेड़ा मंदिर, सोनाडीह मंदिर, पचरूखा देवी का मंदिर, खरीद की देवी का मंदिर, जल्पा-कल्पा का मंदिर, खैराडीह का मंदिर, कारों का मंदिर आदि प्रसिद्ध है, जिनको पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर धार्मिक पर्यटन का रूप प्रदान किया जा सकता है। 

ऐतिहासिक दृष्टि से भी बलिया पर्यटन के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। खैराडीह में की गयी खुदाई में कुषाणकालीन अवशेष मिले हैं। देवकली गाँव में भी कुषाणकालीन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। पक्काकोट की खुदाई में प्राचीन अवशेष मिले हैं। अनेक बुद्धकालीन स्थल भी हैं। जिनकों पर्यटन स्थल के रूपमें विकसित किया जा सकता है। 

स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े अनेक स्थल एवं गाँव ऐसे हैं जिनकों विकसित कर गाँव पर्यटन का रूप प्रदान किया जा सकता है। मंगल पाण्डेय का गाँव नगवा, चित्तू पाण्डेय का गाँव सागरपाली, बैरिया स्मारक स्थल, चरौंवा स्मारक स्थल, बाँसडीह, चितबड़ागाँव सहित अनेक स्थल ऐसे हैं, जिनको विकसित कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े पहलुओं पर पर्यटन स्थल के रूपमें विकसित किया जा सकता है।

जल पर्यटन-बलिया जनपद में जल पर्यटन की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। बलिया गंगा, घाघरा एवं तमसा(छोटी सरयू) नदियों से तीन तरफ से घिरा है। इन नदियों ने अपने प्रवाह मार्ग का परिवर्तन करते समय छाड़्न के रूपमें अनेक ताल- तलैयों का निर्माण किया है। सुरहा ताल, दह ताल, रेवती दह, कटहर नाला, भागड़ नाला सहित अनेक ऐसे प्राकृतिक ताल हैं, जिनको नौकायन, बोटिंग, मत्स्य पालन एवं प्रदर्शनी, पक्षी विहार आदि के रूप में विकसित कर एक दिवसीय पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।

खासतौर से सुरहाताल एवं दहताल को विकसित कर जल पर्यटन का बेहतर विकल्प प्रदान किया जा सकता है। कटहर नाला (कष्टहर नाला) एवं भागड़ नाला को विशेष तौर पर नौकायन के रूप में विकसित करना अत्यन्त लाभदायक होगा। इन दोनों नालों में तथा सुरहा ताल एवं दह ताल में साईबेरियन पक्षी आते हैं, जिनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। किंतु अवैध शिकार हैने के कारण अब ये कम आ रहे हैं। अतः अवैध शिकार पर प्रतिबंध लगना चाहिए और पक्षी विहार के रूप में विकास कर पर्यटन का स्वरूप देने से न केवल स्थानीय, देशी बल्कि विदेशी पर्यटक भी आ सकते हैं। 

यदि वास्तव में बलिया के विकास हेतु कुछ करना है तो यहाँ के महत्वपूर्ण स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर ही इस जिले में बेरोजगारी का समाधान किया जा सकता है।



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