*हृदय की महानता*

एक नगर में एक होटल था। जिसका मालिक दयालु और सज्जन व्यक्ति था। उसका नाम था लालचंद्र। उसका होटल अच्छी आमदनी देता था। जीवन सुखी से चल रहा था।

लालचंद्र की एक विशेषता थी कि वह अपने होटल में आने वाले वह हर विकलांग को मुफ्त भोजन कराता था। कई वर्षों तक यह कार्य निरंतर चलता रहा। वह रोज सुबह चिड़ियों को दाना भी दिया करता था। ऐसे करने पर उसे बहुत शांति मिलती थी, यह बात अमूमन अपने दोस्तों से कहा करता था।

एक दिन एक ओर सज्जन ने लालचंद्र से पूछा, “आप प्रत्येक विकलांग को मुफ्त खाना खिलाते हैं तो आपको नुकसान नहीं होता?”

तब लालचंद्र ने कहा, “मैं हर दिन पक्षियों का दाना देता हूं। मैंने गौर किया किसी अपाहिज पक्षी का दाना कोई अन्य पक्षी नहीं चुनता है। वह पक्षी है उनमें यह भाव है तो मैं तो इंसान हूं। मुझे लगा मुझे भी हर विकलांग व्यक्ति को भोजन करवाना चाहिए। तभी से मैं इस राह पर चल दिया। ऐसा करने पर मुझे आत्मिक सुकून मिलता है।“

इंसान तो सभी होते हैं लेकिन इंसानियत कुछ इंसानों में होती है। यही इंसान सही मायनों में असली इंसान है जो दूसरों के दुख में उन्हें खुश कर अपनी खुशियां खोजें।

किसी पर दया का उमड़ना तो हृदय की भावुकता, संवेदनशीलता का प्रमाण है, किंन्तु उस दया को दान में बदलकर सँसार के उपकारार्थ प्रस्तुत कर देना हृदय की महानता है। 


डॉ0 वी0 के0 सिंह

दंत चिकित्सक

ओम शांति डेण्टल क्लिनिक

इंदिरा मार्केट, बलिया। 





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