विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस


प्रति वर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस मनाया जाता है।  वर्ष 2020 की थीम Food.Feed.Fibre. -the links between consumption and land था अर्थात भोजन, चारे एवं रेशों के लिए उपभोग और भूमि के बीच अंतर्संबंधो को रेखांकित करना है। विश्व मरुस्थलीकरण दिवस के अवसर पर तीन मुख्य बातों के द्वारा मरुस्थलीकरण को रोकने के प्रयासों को प्रसारित किया जाता है।

इनमें से पहला है-भूमि के अपरदन को रोकना। इसके अन्तर्गत जनमानस को जल सुरक्षा, खाद्यान्न सुरक्षा के साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति जागरुक किया जाता है।

दूसरा महत्वपूर्ण कदम सूखे के प्रभाव को प्रत्येक स्तर पर कम करने के लिए कार्य करना है, इसके तहत राहत कार्य के साथ-साथ भावी रणनीति बनाकर उस पर कार्य किया जाता है।

अंतिम महत्वपूर्ण विषय नीति निर्धारकों पर मरुस्थलीकरण संबंधी नीतियों के निर्माण के साथ ही इससे निपटने के लिए कार्य योजना बनाने का दबाव बनाना है।

मरुस्थलीकरण क्या है?

मरुस्थलीकरण जमीन के खराब होकर अनुपजाऊ हो जाने की ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिविधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और निर्जल अर्द्ध-नम इलाकों की जमीन रेगिस्तान में बदल जाती है। अतः जमीन की उत्पादन क्षमता में कमी और ह्वास होता है।

वर्तमान परिदृश्य :

वर्तमान समय में मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया मानव गतिविधियों के बढ़ी है। मरुस्थलीकरण की वर्तमान स्थितियों को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत देखा जा सकता है-

वर्तमान में समस्त विश्व के कुल क्षेत्रफल का पाँचवां भाग, यानी 20 प्रतिशत मरुस्थलीय भूमि के रूप में पृथ्वी पर मौजूद है। जबकि सूखाग्रस्त भूमि कुल वैश्विक क्षेत्रफल का एक तिहाई है।

130 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि क्षेत्र मानव की अविवेकपूर्ण क्रियाओं के कारण रेगिस्तान में बदल गया है। थार के मरुस्थल में प्रतिवर्ष 13000 एकड़ से अधिक भूमि की वृद्धि दर्ज की जा रही है। कुछ वर्षों बाद सहारा रेगिस्तान के क्षेत्रफल में भी एक ऐसी ही बड़ी बढ़ोतरी हो जायेगी।

भारत की वर्तमान स्थिति :

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मरुस्थलीकरण भारत की प्रमुख समस्या बनती जा रही है। दरअसल इसकी वजह करीब 30 फीसदी जमीन का मरुस्थल में बदल जाना है। उल्लेखनीय है कि इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में है।

विश्व बंधुत्व की भावना के साथ इसमें भागीदारी सुनिश्चित करना धरती तथा पर्यावरण को बचाने में सार्थक प्रयास साबित हो सकता है।

डाॅ0 कुमुद मिश्रा 

सामाजिक कार्यकर्ता

उत्तर प्रदेश अध्यक्षा - श्री ब्रजेश्वरी सेवा संस्थान, वृंदावन। 




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